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अनेकान्त / २९
२०. इसी प्रकार हमारे यहाँ के मदिर मे एक भाई वेदी में प्रतिमा का अभिषेक न कर केवल गीले वस्त्र से प्रोक्षण कर देता था और वह दूसरे को अभिषेक नहीं करने देता था। वहीं पर उनका साथी एक ही स्थान की पचीसों पुस्तकें व अखबार लाकर अलमारी में जमा देता था । ज्ञान न होने पर भी उसने एक बड़ी मडली एकत्रित कर ली और मदिर मे चर्चा के माध्यम से हल्ला होने लगा जिससे अन्य बन्धुओं को अशांति का अनुभव होने लगा। ऐसी प्रवृत्ति जब मदिर में होने लगे तब क्या किया जाए?
समाज में तेरह पंथ और बीसपथ दोनों के मंदिर अलग-अलग है, पूजा पद्धति भी अलग-अलग है। जहां ऐसा होता है उसमें विरोध कोई नहीं करता परन्तु इन दोनों के सिवाय तीसरे पंथ का गुप्त रूप से निर्माण कर अशाति या विवाद उत्पन्न किया जाए तो विरोध होना स्वाभाविक है। मुस्लिम राजाओ के आक्रमण मे एक विशेषता यह थी कि वे गायों को सेना के आगे खड़ी कर देते थे और हिन्दू राजाओ से युद्ध करते थे। उसी प्रकार हमारे आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी के ग्रथो को प्रकाशित कर उनकी टीका व प्रवचनो मे अपना मन्तव्य जोड़ देने पर अन्य बधुओ को क्षोभ होना स्वाभाविक है। आचार्य के नाम पर कुछ भी करना उनका अविनय कहलायेगा इसलिए शात रहना पड़ता है। इसी प्रकार मदिरो मे प्रवचन एवं शिविर के मध्यम से अपना प्रचार किया जाता है। इस पर समाज के प्रत्येक परिवार में मतभेद बढ़ रहा है जो मनभेद का कारण है। ऐसी स्थिति मे जो समाज मे एकता चाहते है उन्हें सफलता किस प्रकार मिलेगी ? विचारणीय है। उक्त पुस्तको के सबंध में जो कुछ मैंने लिखा है, उसमें मुझे विरोधी मानना उचित नहीं । मैं बावन वर्ष से मुमुक्षु बंधुओ के संपर्क में हूँ और आज भी आपको प्रतिष्ठा संबधी परामर्श देता रहता हूँ ।
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आपने इन पुस्तको के प्राक्कथनों को अपने मन्तव्य के अनुसार तोड़मरोड़ कर बदल दिया और मुझे छपी पुस्तक पहले नहीं बताई तथा मुझे समर्थक बता दिया, यह मेरे साथ छलकपट करके मुझे समाज के सामने हमेशा के लिए बदनाम कर दिया, इसलिये यह लिखने को मजबूर होना पड़ा है।
- मोतीमहल, सर हुकमचंद मार्ग, इन्दौर