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अनेकान्त/३०
श्रुत, समय पाहुड़ और नय
-ले० जस्टिस एम०एल० जैन तत्त्वार्थ सूत्र का एक सूत्र है- श्रुत मति पूर्व द्वयनेक द्वादश भेदम १/२ (श्रुतज्ञान मतिज्ञान पूर्वक होता है, उसके दो, अनेक और बारह भेद है)
इसकी सर्वार्थ सिद्धि टीकां मे पूज्यपाद लिखते है कि श्रुतज्ञान के ये भेद वक्ता विशेष कृत है और वक्ता तीन प्रकार के है- १ केवली, २ श्रुतकेवली और ३. आरातीय । केवली ने आगम का अर्थरूप से उपदेश दिया, गणधर है श्रुत केवली जिनने अर्थ रूप आगम का स्मरण कर अग और पूर्व ग्रथो की रचना की तथा आरातीय आचार्यों ने अपने शिष्यो के उपकार के लिए दशवैकालिक आदि ग्रथ रचे।
इस श्रुतज्ञान के दो भेद ये है, अग बाह्य और अग प्रविष्ठ। अग बाह्य के दशवैकालिक और उत्तराध्ययन आदि अनेक भेद है तथा अग प्रविष्ठ के अधोलिखित बारह भेद है१ आचार २ सूत्रकृत ३ स्थान ४ समवाय ५ व्याख्याप्रज्ञप्ति ६ जातृ धर्म कथा ७ उपासकाध्ययन ८ अन्तकृद्दश ९ अनुत्तरो पपादिक दश १० प्रश्न व्याकरण ११ विपाक सूत्र और १२ दृष्टिवाद ।
इनमे से दृष्टिवाद के पाच भेद है१ परिकर्म सूत्र २ प्रथमानुयोग ३ पूर्वगत और ४ चूलिका।
इसी दृष्टिवाद के चौरह भेद भी है१ उत्पादपूर्व २ अग्रायणीय ३ वीर्यानुवाद ४ अस्तिनास्ति प्रवाद ५ ज्ञान प्रवाद ६ सत्यप्रवाद ७ आत्मप्रवाद ८ कर्म प्रवाद ९ प्रत्याख्यान १० विद्यानुवाद ११ कल्याण नामधेय १२ प्राणावाय १३ क्रिया विशाल और १४ लोक बिन्दुसार।
इस समस्त श्रुत के अक्षरो का प्रमाण है