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अनेकान्त / २४
जिनवाणी में काट-छांट : समाज धोखे में
- पं. नाथूलाल जैन शास्त्री
समाज के अधिकाश बन्धु वीतराग देव, शास्त्र और दिगम्बर गुरुओ के श्रद्धापूर्वक प्रतिदिन जिन मंदिर में दर्शन एव यथाशक्ति अभिषेक, पूजा तथा स्वाध्याय कर अपने मानव जीवन को सफल करना चाहते है। समाज मे आज हमारे दिगम्बर गुरु और विद्वान भी विद्यमान है जिनसे हमे मार्गदर्शन मिलता है और मुक्ति के मार्ग रत्नत्रय का ज्ञान प्राप्त करने मे सहयोग मिलता है।
परन्तु दुख इस विषय का है कि समाज मे वर्तमान राजनैतिक क्षेत्र के वातावरण के समान ही कुछ बधु अपनी दुकानदारी चलाने और नेतृत्व की भूख कोशात करने के लिए समाज मे भ्राति और अशाति उत्पन्न करने की चेष्टा करते रहते है। ऐसे लोग हमारी सस्कृति, प्राचीन आर्ष परम्परा और आचार्यो के शास्त्रो को बदलकर नया पथ चलाने का तेजी से आदोलन कर रहे है। समाज अपने आगम विरुद्ध मन्तव्य के प्रचार-प्रसार हेतु वे नया प्रकाशन, शिविर और पूजा प्रतिष्ठा द्वारा जनता को आकर्षित कर उनकी श्रद्धाओ को विचलित कर अपना स्वार्थ पोषण कर रहे है। वे हमे प्रशसा का मीठा जहर देते हुए एव मिलकर मारने का तरीका अपनाने में जरा भी सकोच नही करते।
कतिपय मुमुक्षुओ के संबध मे समाज को भलीभाति विदित है कि उनके द्वारा कितनी अशाति और विवाद उत्पन्न हुआ जो आज भी उत्तरोत्तर बढ़ता जा रहा है उसमे विशेषकर हमारे प्राचीन आचार्यो के शास्त्रों और वर्तमान दिगम्बर गुरुओ के प्रति अश्रद्धा उत्पन्न करने की चेष्टा की जा रही है ।
कुछ उदाहरण समाज की जानकारी हेतु प्रस्तुत है.
१. श्री कुन्दकुन्दाचार्य प्रणीत " अष्टपाहुड" ग्रथ के एक भाग "मोक्षपाहुड' की गाथा २५ इस प्रकार है ।
वर वयतवेति सग्गो, मा दुक्ख होइ णिरइ इयरेहि । छाया तवंड्ढियाणं पडिवालताण गुरुभेय ||२५||