Book Title: Anekant 1998 Book 51 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 18
________________ अनेकान्त/१९ नहीं कहा कि जब वे अपने माता के गर्भ मे थे तब उनकी माता ने पार्श्व अर्थात् बगल मे काला सर्प देखा था, इसलिए उनका नाम पार्श्व या पार्श्वनाथ हुआ। विवाह कराने का प्रस्ताव : आ० पद्मकीर्ति ओर रइधु ने पार्श्वनाथ और पद्मराज के मध्य घमासान युद्ध होने का विस्तार से वर्णन करने के बाद उल्लेख किया है कि जब उनके मामा रविकीर्ति (अर्ककीर्ति) ने अपनी बेटी प्रभावती के साथ विवाह करने का उनके समक्ष प्रस्ताव रखा तो पार्श्वनाथ ने उसे स्वीकार कर लिया।, किन्तु उनके विवाह होने का किसी भी पासणाहचरिउ मे उल्लेख नही हुआ है। इसलिए मजुमदार का यह कथन सत्य नहीं है कि पार्श्वनाथ का विवाह हुआ था। वैराग्य का कारण : भ० पार्श्वनाथ के वैराग्य होने के कारणो का उल्लेख सभी “पासणाहचरिउ' साहित्य मे उपलब्ध है। आ० पुष्पदन्त ने इसका कारण आचार्य गुणसेन की तरह जातिस्मरण माना है। जब कि आ० पद्मकीर्ति और रइधु ने लकड़ी मे मध्य से निकले अर्धजले सर्प की मृत्यु के दृश्य को उनके वैराग्य का कारण माना है। दीक्षा : भ० पार्श्वनाथ की दीक्षा कब और कहाँ हुई? यह भी प्रकृत मे विचारणीय है। आचार्य पुष्पदन्त ने तिलोयपण्णत्ति और उत्तरपुराण का अनुकरण करते हुए लिखा है कि विमला नामक पालकी पर बैठ कर अश्वत्थ वन मे पौष शुक्ला एकादशी को पूर्वाहन मे तीन सौ राजाओ के साथ भ० पार्श्वनाथ ने जिन दीक्षा ग्रहण की थी। आ० यतिवृषभ के अनुसार यह दीक्षा विशाखा नक्षत्र मे हुई थी। पुष्पदन्त और गुणभद्र मे अन्तर यह है कि गुणभद्र ने पौष कृष्णा एकादशी को प्रात काल दीक्षित होने का उल्लेख किया है। आ० पद्मकीर्ति ने उनकी दीक्षा तिथि, पालकी, दीक्षित वन का उल्लेख नही किया। केवल आठ उपवास का निश्चय कर जिन दीक्षा लेना लिखा है। महाकवि रइधु ने कहा है कि पौष शुक्ला दशमी को भ० पार्श्वनाथ ने दीक्षा ग्रहण की थी। पालकी का नामोल्लेख रइधु ने भी नहीं किया।, किन्तु एक ऐसे यान का उल्लेख किया जो सूर्य के रथ के समान था। उसी पर बैठ कर पार्श्वनाथ ने अहिच्छत्र नगर के वन मे जाकर दीक्षा ली थी। प्रथम पारणा : भ० पार्श्वनाथ की प्रथम पारणा कब-कहाँ हुई और किसको इस पारणा करने का सौभाग्य मिला? यह भी चिन्तनीय है। इस सबध मे “पासणाहचरिउ"

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