Book Title: Anekant 1998 Book 51 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 11
________________ अनेकान्त / १२ १. आचार्य पुष्पदन्त कृत महापुराण : वि. सं १०वीं शताब्दी के आचार्य पुष्पदन्त ने १०२ संधियों मे अपभ्रंश भाषा में महापुराण की रचना की । इसकी १३ और १४वी सधि में भगवान पार्श्वनाथ के विगत और वर्तमान भवो का वर्णन किया गया है। यह वर्णन आचार्य के उत्तर पुराण के आधार पर किया हुआ प्रतीत होता है। अत इसकी कथावस्तु परम्परागत है। इसकी १३वी संधि में बतलाया गया है कि पोदनपुर के राजा अरविन्द के मंत्री विश्वभूति की पत्नी के गर्भ से कमठ और मरुभूति नामक दो पुत्र हुए थे । अपने छोटे भाई मरुभूति की पत्नी वसुन्धरी के साथ गुप्त संबंध स्थापित करने के कारण मरुभूति द्वारा शिकायत किया जाने पर राजा ने कमठ का सिर मुड़वा कर और गधे पर चढ़ाकर नगर मे घुमवा कर अपने राज्य से निर्वासित करने का दंड दिया था । कमठ ने वन मे जाकर शैवधर्म के अनुयायियो से दीक्षा ले ली । मरुभूति को अपने बड़े भाई के निर्वासन का दुख हुआ। राजा के मना करने पर भी अपने बड़े भाई से क्षमा मागने और घर वापिस लाने के लिए मरुभूति कमठ के पास गया। कमठ ने क्रोधित होकर उसके सिर पर चट्टान से आघात कर उसे मार डाला मरुभूति मर कर वज्रघोष हाथी हुआ । कमठ कालान्तर मे मर कर वही कुक्कुट नामक सर्प हुआ। इस पहले भव मे घटी घटना के कारण कमठ मरुभूति के प्रति बैर-बंध कर दस भवो तक कमठ के जीव ने कुक्कुट सर्प, अजगर, कुरग भील, सिह, महिपाल और ज्योतिष देव के रूप में मरुभूति के जीव हाथी, रश्मिवेग मुनि, वज्रनाभि मुनि, और पार्श्वनाथ पर क्रूरता पूर्वक घात और उपसर्ग किया इसलिए सहस्रार, अच्युत, मध्यग्रैवेयक और प्राणत स्वर्गो मे उत्पन्न होकर स्वर्गो के सुखों को भोगते हुए वे तीर्थकर हुए और अन्त मे उन्होने निर्वाण प्राप्त किया। उक्त भवो का वर्णन पुष्पदन्त ने १४वीं सधि में किया है। पुष्पदन्त ने उक्त कथा के प्रसग में पार्श्वनाथ के गर्भ, जन्म, दीक्षा और निर्वाण सम्बन्धी महत्वपूर्ण तिथियो का उल्लेख किया जिनकी चर्चा यथास्थान की जायेगी । २. देवदत्त कृत पासणाह चरिउ : डॉ० देवेन्द्र कुमार ने अपने ग्रन्थ " अपभ्रंश भाषा और साहित्य की शोध प्रवृत्तियो मे उल्लेख किया है अपभ्रंश भाषा के ख्याति प्राप्त देवदत्त ने "पासणाह चरिउ" नामक ग्रन्थ की रचना की थी, जो अब अनुपलब्ध है। जबूस्वामि चरिउ

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