Book Title: Anekant 1993 Book 46 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 44
________________ प्राचीन भारत की प्रसिब नगरी-अहिच्छत्रा सितार लिए हुए मनुष्य, एक नग्न बच्चा तथा एक खड़ा वाया होगा । किन्तु इसमे कि उन्होंने नई इंटे नही लगहुआ सन्यासी प्रमुख है । लगभग १०० से ३५० ई० तक वाई । अत: केवल मजदूरो पर ही उनका व्यय हआ। बोने, नगाड़ा बजाने वाले तथा मसक बाजे वालो की कुछ स्थानों पर अधिष्ठान पर दीवारों को मोटाई १५ लघु मूर्तिया मिली हैं। इनके साथ दीपक, चिड़िया, पालथी फोट तथा कुछ स्थानो पर १४ से १५ फीट तक है। मारकर बैठे हुए बोने सगीतज्ञ तथा सकोरे आदि प्राप्त अहिच्छत्र जिला ५०० मील के घेरे मे था। इसमे रूहेलहुए हैं। लगभग ४५०-६५० ई. के धातु के सजे हए खण्ड का आधा पूर्वी भाग रहा होगा जो कि उत्तरी टुकड़े शिव मन्दिर से प्राप्त हुए हैं जिसमे शिव की पौरा- पहाडियों से गगा के मध्य स्थित था। पश्चिम मे पीली. णिक कथाओ से सम्बन्धित चित्र है। मुडे हुए धातु के भात स घाघरा क नि भीत से घाघरा के निकट खराबाद तक रहा होगा। यह सजे हुए टकड़े गुप्तकाल के है। इनके अन्दर बनी हुई स्त्री प्रदेश राजमार्ग से ५०० मील ठहरता है। पुरुष मूर्तियां स्त्री पुरुष को बालो की सजावट की विवि- १९४० से १९४४ तक आर्कमाजिकल मर्वे विभाग ने धता प्रस्तुत करती हैं। कुछ पश्चात् कालीन पति तथा किले के मध्य कुछ गिने चुने स्थानो पर खुदाई की थी। पत्नियो की मूर्तियो धर्मनिरपेक्ष है। इनमें छेद बने हुए है खुदाई के परिणामस्वरूप प्रागैतिहासिक काई वस्तु नही जो सम्भवतः गाय के पवित्र स्थानो अथवा समाधियों पर मिलो। अतः इम स्थान का महाभारत की पुरानी अहि. मनौतियां मनाने वालों द्वारा रखी जाती है। च्छत्रा से सम्बन्ध जुटाना अभी शेष है। यहा प्राप्त विभिन्न पुरातात्विक अन्वेषण : स्तरो का काल इस प्रकार निर्धारित किया गया है। आधुनिक काल में सबसे पहले कैप्टन हाम्सन अहि स्तर--६ ३०० ई० पू० पछत्र पहुंचे थे। उन्होंने अहिच्छत्र की कई मीलों तक फैले स्तर-८ ३०० ई० पू० से २०० ई. पूर्व हए किसी प्राचीन दुर्ग का भग्नावशेष बतलाया था, जिसमे स्तर २०० ई० पू० से १०० ई० पूर्व सम्भवत: ३४ अट्टालक थे, और जिये पाण्डु दुर्ग कहा स्तर- ६ तपा ७ १०० ई० पू० से १०० ई० जाता था। अट्टालक प्राय: २८ से ३० फुट ऊचे थे, केवल स्तर--४ १०० ई० से ३५० ई. पश्चिम की ओर ऊंचाई ३५ फीट थी। दक्षिण पश्चिम स्तर-३ ३ ० ई० से ७५० ई. किनारे के समीप एक अट्टालक ४७ फीट ऊचा है। अन्दर स्तर-२ ७५० ई० से ८५० ई. के करों की औसतन ऊचाई १५ से २० फीट है। वर्त- स्तर--१ ८५० ई० से ११०० ई. मान में प्राप्त कुछ अट्टालक अधिक प्राचीन नही हैं, क्यों १८६२ ई० के कनिघम ने भी अहिच्छत्रा के कुछ कि २०० वर्ष पहले मोहम्मद खां ने इस दुर्ग को पुनः भाग को खुदाई कराई थी। १८८८ मे रामनगर के एक स्थापना की कोषिश की थी। मुहम्मद खां का उद्देश्य इसे जमोदार ने खुदाई कराई। आशिक खुदाई १८६१-६२ अपना किला बनाना था ताकि मुगल बादशाह के द्वारा मे हुई । १९४०-66 मे आर्कलाजिकल सर्वे आफ इडिया खदेड दिये जाने पर इसमें शरण प्राप्त की जा सके । नई विभाग ने अधिक व्यवस्थित और विस्तृत कार्य किया। दीवालों की मोटाई २ फीट ९ इच से ३ फीट ३ इच तक १९४०-४४ के कार्य के फलस्वरूप ३०० ई० पूर्व से है। प्रचलित परम्परा के अनुसार प्रली मुहम्मद ने इस ११०० ई० तक के नी स्तर प्रकट हुए। सबसे नीचे स्तर दुर्ग के पुननिर्माण में एक करोड़ काया व्यय किया। पर कोई रचना नही मिली, किन्तु भरे लाल रंग की अन्त मे इसके भारी व्या में विवश होकर उसने इस मिट्टी के बर्तन निकले। यद्यपि उत्तर भारत में अनेक योजना को छोड दिया। वनिंघम का अनुमान है कि स्थानो पर. विशेषत: जो स्थान महाभारत की कथा से अली महम्मद ने एक लाख रुपये इस किले के जीर्णोद्धार सम्बन्धित है, यह निकल । इस प्रकार के मिट्टी के बर्तनों में व्यय किये होगे । दक्षिण पूर्व की ओर एक कलात्मक के उत्पादक कारखाने उस समण काल से सम्बन्धित है प्रवेशार है, जिसे निश्चित रूप से मुसलमानों ने बन- जो कि हडप्पा संस्कृति के बाद और ऐतिहासिक युद्ध से

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