Book Title: Anekant 1993 Book 46 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 156
________________ संशोधक जी संग्रहीत सभी प्रतियों में मृडबिद्री की प्रति (जिसकी प्रतिकृति ये अपने समयसार को कह रहे हैं) का (भी) अपेक्षाकृत (ही) शुद्धमान रहे हैं यानी वह भी पूर्णशुद्ध नहीं थी और पुन: उसे संपादक जी ने व्याकरण और छन्द शास्त्र की दृष्टि से स्वयं शुद्ध किया गया बताया है (प्राकृतविद्या दिसंबर 93 ) । इससे पुन: यह सिद्ध हुआ है कि इनकी प्रति मडबिद्री की प्रति की शुद्ध प्रति कृति नहीं है ।। इनके उक्त कथन से यह भी स्पष्ट नहीं होता कि उसके शुद्धिकरण में इनके द्वारा अपनाया गया व्याकरण कुंदकुद से पूर्वकालीन है या वही है जिसके आधार पर कुंदकंद ने ग्रन्थ रचना में शब्दों का चयन किया? या कुंदकंद के बाद का कोई अन्य व्याकरण) हाँ. वेसे समयमार पृष्ठ 2 पर सम्पादक ने पोग्गल शब्द की रूपसिद्धि में बारहवीं सदी के हैमचन्द्र के ओत्संयोगे' सूत्र का उल्लेख किया है और दिनांक 20-2 )३ के पत्र में हमें भी लिखा है कि 'संयुक्त अक्षर आगे रहने पर पूर्व के उकार का आकार हो जाता है ।' मा यदि कुंदकंद ने अपनी रचनाओं में हैम-व्याकरण को आधार बनाया है तो वे स्वयं ही ईस्वी पूर्व के नहीं, अपित हैमचन्द्र के समय के बाद के सिद्ध होते हैं । तो क्या संशोधक आचार्य कंदकंद को हैमचन्द्र के बाद तक ले जाना चाहते है ? अन्य पंथी ना यह चाहते ही हैं ? खेद : दूसरी बात । यदि संपादक जी आचार्यवर को- (व्याकरण के) उक्त सूत्र से बंधा मानते हैं और उनकी रचना का व्याकरण से (जिसे वह प्राकृत में जरूरी कहते हैं) निर्मित मानते हैं और उस हिसाब से शुद्धिकरण का दावा करते हैं तो उन्होंने अपने संशोधित समयसार में सभी ऐसे शब्दों में - जिनमें संयुक्त अक्षरों के पूर्व उकार विद्यमान है, उस उकार को ओकार क्यों नहीं किया? जबकि व्याकरण के नियम में अपवाद नहीं होता । और उक्त सूत्र में विकल्प का कोई संकेत नहीं । 43

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