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दृष्टि से किसी आगम के मूल शब्द को सुधार के नाम पर बदलना
आगम को विरूप करना है । कृपया मृडबिद्री ग्रन्थ की प्रति शीघ्र भिजवाने की कृपा करें ।' -- इसी पत्र में यह भी लिखा था कि - आपने कहा था कि आपके द्वारा प्रकाशित 'समयसार' ग्रन्थ मूडबिद्री के ताडपत्र पर लिखित प्रति पर आधारित है - आप उस ग्रंथ की छाया प्रति भिजवा दें । उसमें कुछ खर्चा भी हो तो हम सहर्प आप को देंगे - 1
13 मार्च 93 को वीर सेवा मंदिर की कार्यकारिणी की ओर से भी प्रति भेजने के लिए मंत्री कुंदकुंद भारती से निवेदन किया गया - उन्हें यह भी लिखा कि 'यदि आपका समयसार उसी की सत्य प्रति है तो वीर सेवा मन्दिर अपनी सभी आपनियाँ सखेद वापस ले लेगा । यही मांग पोडत बलभद्र जी ने अपने 10-3 )3 के पत्र में रखी है ।' __ खेद है कि संशाधक महोदय ने कुंदकुद द्वारा प्रयुक्त 'पोग्गल' रूप की सिद्धि में स्वयं की ओर से परवर्ती हैमचन्द्र के सूत्र का सहारा लेकर भविष्य में दिगम्बरों को पीछे फेंकने के लिए, श्वेतांबरों को यह रिकार्ड तैयार कर दिया है कि वे सहर्ष कह सकें कि 'समयसार' के शब्द रूपों की सिद्धि में कुंदकुंद द्वारा हैम-व्याकरण का अनुसरण करने की बात से यह सिद्ध है कि .. कुंदकुंद का अस्तित्व हैमचन्द्र के बाद का है ओर उक्त उल्लेख एक सिद्धान्तचक्रवर्ती दिगम्बराचार्य की प्राकृत संस्था से प्रकाशित ग्रन्थ में होने से सर्वथा प्रामाणिक और सत्य है।
प्रश्न होता है कि यदि 'पोग्गल' रूप का निर्माण ( जैसा संपादक का मत है) व्याकरण से हुआ तो पहिले उमका रूप क्या था? यदि उसका पूर्व रूप (जैसा कि अवश्यंभावी है) 'पुग्गल' था, तो वह शब्द का प्राकृतिक - जनसाधारण की बोली का स्वाभाविक रूप है और 'पोग्गल' रूप से प्राचीन भी । ऐसे प्राचीन 'पुग्गल' रूप का बहिष्कार