Book Title: Anekant 1993 Book 46 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 159
________________ करना कौनसी बड़ी बुद्धिमानी है ? और यदि 'पोग्गल' शब्द का प्राकृत का रूप मानते हैं (जैसा कि कहा भी जा रहा है) तो उसमें व्याकरण का उपयोग क्या? वह तो प्राकृत अर्थात् जन जन की बोली का स्वाभाविक रूप है ही । यदि वह रूप जन-जन की बोली का स्वाभाविक रूप नहीं तो पश्चाद्वर्ती व्याकरण से संस्कारित तथा परापेक्षी होने से उसे प्राकृत का नहीं कहा जा सकता । फलतः प्राकृत भाषा के स्वरूप के अनुसार दोनों ही रूप व्याकरण निरपेक्ष - असंस्कारित -प्रान्त प्रान्त की जन भाषाओं के विभिन्न स्वाभाविक रूप हैं। और यह सभी मान रहे हैं कि भापा का रूप पाँच कोप के अन्तराल से स्वयं स्वाभाविक रूप में परिवर्तित होता रहता है । प्राकृत भाषा के स्वरूप के विषय में कहा गया है - 'सकल जगज्जन्तूनां व्याकरणादिभिरनाहितसंस्कार: सहजो वचन व्यापारः प्रकृतिः, तत्र भवं सैव वा प्राकृतम् ।' - अर्थात् व्याकरणादि के संस्कारों से रहित, लोगों का स्वाभाविक वचन व्यापार अथवा उससे उत्पन्न वचन प्राकृत हे ! संशोधक महोदय ने स्वयं भी लिखा है कि - "प्रकृत्या स्वभावेन सिद्धं प्राकृतम्' अथवा प्रकृतीणां सर्वसाधारणजनानामिदं प्राकृतम् ।' अर्थात् प्रकृति स्वभाव से सिद्ध भाषा प्राकृत है अथवा सर्व साधारण मनुष्य जिस भाषा को बोलते हैं, उसे प्राकृत कहते हैं।" उक्त विश्लेषण के अनुसार प्राकृत भाषा, पश्चाद्वर्ती-व्याकरण के नियमों के बन्धन से मुक्त है और न प्राकृत भाषा में बना प्राकृत भाषा का कोई स्वतंत्र व्याकरण ही है और हो भी तो क्यों? जब कि इस भाषा में कोई निश्चित बन्धन ही नहीं । आज प्राकृत के नाम से उपलब्ध सभी व्याकरण संस्कृतज्ञों को बोध देने के लिए संस्कृत में ही निबद्व हैं और उनमें कोई भी कुन्दकुन्द जैसा प्राचीन नहीं है । 46

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