Book Title: Anekant 1993 Book 46 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 155
________________ में दृढ़ हैं और अन्तिम क्षण तक दृढ़ रहने में संकल्पबद्ध हैं -धर्म हमारी रक्षा करेगा। आगम संशोधक महोदय ने जैसा कि प्राकृत विद्या पत्र के जुलाईदिसम्बर 93 अंक में लिखा वैसा हमें विश्वास नहीं होता कि वे कभी अनेकान्त के संपादक या वीर सेवा मन्दिर की कार्यकारिणी के सदस्य रहे हैं और वीर सेवा मन्दिर ने कभी उन्हें मनोनीत करने की भूल की हो ? हाँ, संशोधक इस सचाई को अवश्य स्वीकार कर रहे हैं कि अनेकान्त में प्रकाशित लेखों में उनका कहीं भी नाम नहीं लिया गया । पर फिर भी वे अनेकान्त पर 'पर्रानन्दोपजीवी' होने का आरोप लगा रहे हैं । उत्तर में मैं उन्हें 'परप्रशंसापजीवी' कहना बड़प्पन नहीं समझता । __ यहाँ से यद्यपि किसी व्यक्ति विशेष को इंगित कर नहीं लिखा जाता फिर भी लोग लेखनी की स्पष्टता से 'चोर की दाढ़ी में तिनका' जैसी कहावत से ग्रस्त हो जाँय तो यह उनका ही गुण है - हमारा दोष नहीं। कहा जा रहा है कि उनकी कुंदकुंद भारती को बदनाम किया जा रहा है । पर ऐसा है नहीं । वीर सेवा मंदिर तो प्राचीन परम्परित आगम के मूल रूप को सुरक्षित रखने के लिए उनकी ही नहीं, सबकी कुंदकुद भारती (आगम) पर लादी हुई विकृति के निवारण का प्रयत्न ही कर रहा है, जो संशोधक ने कर रखी है । यह तो पहिले भी कहा जा चुका हे कि इधर सभी आगम रूपी कंदकुंद भारती के न बदलने की बात कर रहे हैं. किसी व्यक्ति विशेष या किसी संस्था विशेष की बात नहीं । यदि संशोधक द्वारा दिगम्बरों की श्रद्धास्पद आगम भाषा को भ्रष्ट कहना अपराध नहीं, तो जन-जन की मान्य शुद्ध भाषा का विरूप करने पर उसे ध्वंस (करना) कहना अपराध क्यों? और ऐसे ध्वंस पर दाता को चेतावनी देना अनिप्टकर कैसे? 12

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