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किया है, कृपया उसकी एक प्रति भेज दें तो विषय के सभी पक्षों पर विचार करने में सुगमता रहेगी और समुचित समाधान भी हो सकेगा। शेष आपका उत्तर आने पर,
भवदीय, महासचिव
3 मार्च, 93 आदरणीय पंडित बलभद्र जी, सादर जजिनेन्द्र
आपस दो सप्ताह पूर्व दूरभाष पर और आपके प्रतिनिधि श्री सुभाषचन्द्र जैन स 2-3 बार बातें हुई । आपने कहा था कि आपके द्वारा प्रकाशित “समयसार'' ग्रन्थ मृडबिद्री के ताडपत्र पर लिखित प्रति पर आधारित है । मैंने आपसे भी निवेदन किया था और आपक प्रतिनिधि से भी कि उक्त मृडबिद्री के ग्रन्थ की छाया प्रति हमें उपलब्ध कराने की कृपा करें ताकि हम भी अपने शोधार्थियों के लिए उपयोग कर सकें।
कल आपके प्रतिनिधि ने कहा कि मैं लिखित में आपसे निवेदन करूं, अत: मेरा निवेदन है कि आप उक्त ग्रन्थ की छाया प्रति भिजवा दें। उसमें कुछ खर्चा भी हो तो हम सहर्ष आपको देंगे । इस प्रकार उस ग्रन्थ से हमारा मार्गदर्शन भी होगा और आपके इस पक्ष को भी बल मिलेगा कि आपने “समयसार" मूडबिद्री के ताडपत्री पर लिखित ग्रन्थ को आदर्श प्रति मानकर ही मुद्रित कराया है ।