Book Title: Anekant 1993 Book 46 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 138
________________ 18 फरवरी. 3 माननीय पंडित बलभद्र जी जैन संपादक "समयमार कुन्दकुन्द भारती, नयी दिल्ली आदरणीय. आपकं पत्र दि ।- 2 )क उत्तर म निवेदन है कि ।... मं सालापुर से प्रकाशित "मृलाचार'' ग्रन्थ स सम्बन्धित गाथा के पृष्ट की छाया प्रति संलग्न है जिसम हदि का नही "होई" शब्द का प्रयोग है। भारतीय ज्ञानपीठ व अन्य पूजा की पुस्तको अभा दि जैन परिषद की पाठावला में भी 'हर्वाद' शब्द का प्रयाग नही है । पण्टिन पदमचन्द्रजी गाम्बी से बात करन पर उन्हान कहा "डय विषय म वह पहल ही लिग्नु चक है । उनका अभिमान है कि एक ही ग्रन्थ में एक गब्द का विभिन्न स्थानों पर विभिन्न पाम दिया गया है । उनकी दृष्टि में व सभी ठीक है । जिस जगह जिम शब्द का जा रूप प्रयुक्त हुआ है आग भी वहीं होना चाहिए । गन्द का बदल कर एकरूपता लाने के चक्कर में मूल रूप म बदलाव य प्राचीनता नष्ट होती है । आवश्यक होने पर कुछ पाठ भेद स्पष्ट करना भी पड़े तो उसे टिप्पणी में दिया जाना चाहिए । मूल गाथा के स्वरूप को बदला नहीं जाना चाहिए, उसे अक्षुण्ण रहना ही चाहिए । यह मत कवल मंग ही नहीं. अनेक उच्चकोटि क मर्धन्य विद्वानों का भी है ।" पण्डित जी की जिन आपत्नियों का यप्रमाण समाधान आपने तयार 5

Loading...

Page Navigation
1 ... 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168