Book Title: Anekant 1993 Book 46 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 141
________________ कुन्दकुन्द भारती द्वारा प्रकाशित ग्रन्थ में संशोधन कर शब्दों में परिवर्तन से यह विवाद उत्पन्न हुआ । इस विषय पर वीर सेवा मंदिर की कार्यकारिणी ने 1988 में विचार किया और निर्णय लिया कि ऐसे प्राचीन आगम ग्रन्थों में शब्द परिवर्तन कर संशोधन की परिपाटी को रोका जाय अन्यथा मूल आगम का लोप ही हो जायेगा । इसी दृष्टि से इस सम्बन्ध में विद्वानों से प्राप्त विचारों को पत्रक के रूप में प्रसारित कर समाज को जागृत करने का प्रयत्न किया गया । हालांकि उक्त प्रसंग में वीर मेवा मंदिर में 1988 में प्रकाशित "अनेकान्त'' के तीन अंकों में प्रकाश डाला गया था जबकि 1993 में कुन्दकुन्द भारती से उपरोक्त आरोप पत्र प्राप्त हुए हैं, जिनमें 1988 के अंकों का हवाला दिया गया है । उन पत्रों में मुख्य रूप से यह कहा गया है कि मृडबिद्री में प्राप्त ताडपत्रों पर लिखित समयमार को आर्दश प्रति मानकर ही यह ग्रन्थ मुद्रित कराया गया है और यह आशय निकलता है कि कुन्दकुन्द भारती द्वारा प्रकाशित समयमार ग्रन्थ उक्त प्रति के अनुसार है, परन्तु वस्तुस्थिति इससे भिन्न है क्योंकि उसी ग्रन्थ के प्रारम्भ में 'मुन्नडि' शीर्षक से जो लेख छपा है उससे यह स्पष्ट हो गया है कि यह ग्रन्थ किसी भी अन्य उपलब्ध समयसार की सत्य प्रति नहीं है। आपके उपरोक्त एक पत्र में श्री राजकृष्ण जैन चेरिटेबिल ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित समयसार ग्रन्थ के हवाले से कहा गया है कि उन्होंने भी समयसार में संशोधन किया है, किन्तु उसकी प्रस्तावना से विदित हुआ कि उन्होंने संशोधन नहीं किया है बल्कि छूटे शब्द व पंक्तियों की पूर्ति विद्वानों की देख रेख में की । उन्होंने व्याकरण के आधार पर कोई भी शब्द नहीं बदला है ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168