Book Title: Anekant 1993 Book 46 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 118
________________ हुए स्पष्ट लिखा था कि आप मूढब्रिद्री की ताडपत्री की छाया प्रति भिजवा दें । यदि सन्दर्भित समयसार उसी ताड़पत्री के अनुरूप है तो वीर सेवा मन्दिर अपनी सभी आपत्तियां सखेद वापस ले लेगा, किन्तु आज तक ताडपत्री की प्रतिलिपि नहीं भेजी गयी । वास्तविकता तो यह है कि उनका यह समयसार ग्रन्थ किसी भी अन्य उपलब्ध समयसार की प्रामाणिक प्रतिलिपि नहीं है क्योंकि संपादक समयसार महोदय ने स्पष्ट लिखा है कि व्याकरण के आधार पर गाथाओं को संशोधित कर शब्दों में परिवर्तन किया गया है । मेरा समयसार - पण्डित बलभद्र जैन पण्डित बलभद्र जी सन्दर्भित ग्रन्थ को "मेरा समयसार' कहते हैं. जिसका उल्लेख उन्होंने अपने संपादकीय में कई जगह किया है । वास्तव में उन्होंने आचार्य कुन्दकुन्द के समयसार को अपना समयसार बना दिया है । सम्भवत: कालान्तर में यह समयसार उनके द्वारा रचित ही जाना जाने लगेगा । लोकेषणा और वित्तेषणा लोगों से क्या कुछ नहीं करा देती ? वे लिखते हैं कि “आश्चर्य की बात है कि उन्होंने मेरा नाम नहीं दिया" । वास्तविकता यह है कि यह एक शास्त्रीय विषय था जिसका समाधान भी शास्त्रज्ञ ही करते, किन्तु बलभद्र जी इसे अपने ऊपर एक प्रहार समझ रहे हैं, यह दुर्भाग्य ही है । हमें उनका नाम देने में कोई डर नहीं है। हमारा मन्तव्य ___ शास्त्रीय चिन्तन और मनन के लिए पण्डित पद्मचन्द शास्त्री का लेख “परम्परित मूल आगम रक्षा प्रसंग' के अन्तर्गत इसी अंक में पृष्ठ 36 पर दिया जा रहा है । वीर सेवा मन्दिर का मन्तव्य इस प्रकार है :

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