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प्रस्तावना में लिखा है "मुद्रित कुन्दकुन्द के साहित्य की वर्तमान भाषा अत्यन्त भ्रष्ट एवं अशुद्ध है "। आचार्य कुन्दकुन्द के साहित्य को अत्यन्त भ्रष्ट एवं अशुद्ध कहने का दुःसाहस केवल दिग्भ्रमित व्यक्ति ही कर सकता है।
डॉ० नेमिचन्द जैन इन्दौर
पं. बलभद्र जी ने डॉ. नेमिचन्द जैन इन्दौर पर भी आरोप लगाया है कि उन्होंने कोई उत्तर उन्हें नहीं दिया है । डॉ. नेमिचन्द जैन का 29-5-93 का पत्र हमारे पास है जिसमें उन्होंने पं० पद्मचन्द्र शास्त्री के प्रति लिखा है कि "आदरणीय पण्डित जी तक मेरा प्रणाम पहुंचाइए, उन्हें माध्यम बनाकर मुझ पर भी आक्रमण हुआ है । पण्डित जी के लिए मन में आदर भाव है । वे मात्र लौह पुरुष नहीं हैं, स्टेनलैस फौलाद के आदमी हैं, निष्कलंक, स्वाभिमानी' । 7-6-93 के पत्र में उन्होंने लिखा है कि लोग मेरे और उनके बीच दीवार खड़ी करने पर आमादा हैं, किन्तु ऐसा कभी नहीं हो पायेगा । मेरी शास्त्री जी के प्रति श्रद्धा अविकल रहेगी । उसमें कभी कोई परिवर्तन नहीं होगा । मैं पं. पदमचन्द जी की विशेषता, उनकी विद्वता और स्वाभिमान का कायल हूँ"।
बाबू नेमिचन्द जैन, नयी दिल्ली - वार्ता प्रसंग
बाबू नेमिचन्द जैन के हवाले से पं० बलभद्र जी ने श्री पद्मचन्द जी शास्त्री पर आरोप लगाया है कि शास्त्री जी ने बाबू नेमिचन्द जी से कहा था "पं० बलभद्र जी से मेरा समझौता करा दीजिए" । वस्तुस्थिति इसके बिल्कुल विपरीत है । शास्त्री जी ने कभी भी उनसे ऐसा नहीं कहा । बाबू नेमिचन्द जी ने स्वयं बलभद्र जी के उक्त आरोप का खण्डन कई लोगों के सामने किया है ।