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१६, बर्ष ४६, कि०२
अनेकान्त
असत्य माने जाएंगे। उनके संबंध में भी पक्का पुरा- हैं। कुछ गुहा मन्दिर और मुनिमडा या कुडक्कल अब भी तात्विक साक्ष्य उपलब्ध नही हुआ है। ऋग्वेद मे आर्यों इपेक्षित हैं। किमी जैन विद्वान का भी ध्यान इस ओर और पणियो के संघर्ष का स्पष्ट संकेत है। ये लोग वेदों नहीं गया। इसी लेख में दिए कुछ उदाहरणो से यह स्पष्ट को नहीं मानते थे और कुछ विद्वान यह मानते है कि पणि हो जाएगा। जाति उत्तर भारत से खिसकते-खिसकते केरल पहुची और केरल की भूमि पर्वती क्षेत्रों, मध्यभूमि और समुद्रबहां बस गई। उसने अरब देशों, रोम आदि से व्यापार तटीय भागो मे बंटी हुई है। परिणाम यह है कि घने किया। केरल का इतिहास उसके विदेशों से व्यापारिक जंगलो से आवृत कुछ अधिक ही ऊचे पहाडों पर स्थित सम्बन्धों से प्रारम्भ होता है किन्तु ये व्यापारी पिस जाति गुफाओं, शैल मन्दिरो आदि का अध्ययन कठिन भी है। के थे इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता। किन्तु इतिहास ऐसे जिन कुछ अवशेषो का अध्ययन हुआ है, वे जनधर्म से तो अपनी कुछ न कुछ निशानी छोड़ता ही है। केरल की सबधित पाए गए हैं। आदिवासी जातियां जैसे पणियान, कणियान, पाणन तथा तमिलनाडु की ही भांति केरल मे भी धार्मिक उथलपणिकर आदि एवं पन्नियकरा, पन्नियर जैसे स्थान नाम पुथल हुई। उसके कारण भी जैन स्मारको को क्षति और कुछ अन्य जातियो मे जेनत्व के चिह्न पगि या जेन पहुंची। अनेक जैन मन्दिर और पाश्र्वनाथ की शासनदेवी धर्मावलम्बियो के प्राधान्य को सूचित करते हैं। इसका पद्मावती के मन्दिर शिव या विष्ण मन्दिरो के रूप मे या विश्लेषण प्रस्तुत लेखक ने अभी अप्रकाशित तुस्तक केरल भगवती मन्दिरो के रूप में परिवर्तित कर दिए गए । अब मे जैनमतम मे एक स्वतत्र अध्याय मे किया है। इस पृष्ठ- उन्हें कुछ प्रतीकों से ही कठिनाई से पहिचाना जा सकता भूमि का उद्देश्य यह है कि केरल मे महापाषाणयुगीन है। अनेक शिलालेख या तो नष्ट हो गए हैं या अभी (Megalithic) जो अवशेष पाए जाते है। उनका संबध उनका समुचित अध्ययन ही नहीं हया है। जैनधर्म से जोड़ना अनुचित नहीं जान पड़ता।
केरल मे राजनीतिक आक्रमणो के कारण न केवल एक अन्य कारण यह भी है कि जिन अर्जन विद्वानो जैन मन्दिरो को हानि पहुची अपितु वैदिक धारा के मदिर ने केरल मे जैनधर्म संबधी कार्य किया है, उन्हे जैन भी क्षतिग्रस्त हुए। इतिहासकारो का मत है कि सदियों मास्यानों, प्रतीको आदि की समुचित जानकारी उपलब्ध से केरल के मन्दिरों के लिए आदर्श कूणवायिल कोद्रम का नही थी ऐसा लगता है। शायद यही कारण है कि कुछ प्रसिद्ध जैन मन्दिर हैदरअली के द्वारा की गई विनाशजैन अवशेषो आदि को बौद्ध समझ लिया गया है। जो भी लीला का शिकार बना और उसका जो कुछ अस्तित्व हो.जैन अवशेषो आदि की खोज के लिए हम गोपीनाथ बचा था उसे उन डच लोगो मे नष्ट कर दिया। गोआ में राव.कजन पिळळ आदि विद्वानो के बहुत ऋणी हैं। जिन भी अनेक जैन मन्दिरो को क्षति पहुचाकर नष्ट कर दिया अनुसंधानकर्ताबो ने केरल मे जैन अवशेषो की चर्चा भी था। टीपू सुलतान ने भी जैन मन्दिरो को हानि पहुंचाई। की है, उन्होने उन मन्दिरो, मस्जिदो आदि की या तो केरल मे जैन मन्दिरो की प्राचीनता आदि के सबध समचित समीक्षा नही की है या उन्हे बिल्कुल ही छोड़ में एक कठिनाई वहाँ के जैन धर्मावलबियो के कारण भी दिया है जो किसी समय जैन थे। यह तथ्य मस्जिदो के उत्पन्न हो गई है। उन्होने प्राचीन मन्दिरो को गिराकर सम्बन्ध मे विशेष रूप से सही है । आखिर वे भी तो जैन उनके स्थान पर सीमेट कक्रीट के नए मन्दिर बना लिए शाय नमने है। ऐसी दम मस्जिदें इतिहासकारो ने हैं। अतः प्राचीनता के तार जोड़ना एक कठिन कार्य हो खोज निकाली हैं।
गया है। यह भी एक सत्य है कि जंन पुरावशेषो का योजना- उपर्युक कठिनाइयो और कारणों के होते हुए भी पर्वक वैज्ञानिक और विस्तृत अध्ययन ही नही हुआ है। महापाषाणयुगीन (कुडककल, शैल-आश्रय) अवशेषो से शताधिक गुफाएँ ऐसी है जो अनुसधान की अपेक्षा रखती लेकर आधुनिक युग के विद्यत और प्रकाश मंडित जैन