Book Title: Anekant 1993 Book 46 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 84
________________ तीर्थकर शीतलनाथ सारा संसार ही नाशवान है। वैराग्यपूर्ण भावनाओ मे भाद्रिलपुर विदिशा : बद्धि हो लगी। तभी नौकानिक देवो ने स्वर्ग से आकर तीर्थङ्कर शीतलनाय की जन्मभूमि भद्दिलार, भद्रपूर उनकी बदना की और उनके वैराग्यपूर्ण विचारों की वर्तमान विदिशा (मध्यप्रदेश) है। इसी पावन नगर में सराहना की। यह माघ कृष्ण द्वादशी के सायकाल का भगवान शीतलनाथ के गर्भ, जन्म, बीक्षा एवं तप -चार समय था। महाराज शीतलनाथ तत्काल हो अपने पुत्र को कल्याणक सम्मान हए है। इस बात की पुष्टि के लिए राज्य सोप शुकप्रभा नामक पालनी पर आरूढ हो नगर अनेकों शास्त्रीय व शिलालेखी पण उपलब्ध हैं । अहिंसा के बाहर बन में पहुच, दो दिन के उपवास का व्रत ले, वाणी के पूर्व प्रकाशित "ती. शीनल श्रेयास व वासुपूज्य' सयम धारण कर ध्यान मे लीन हो गए। उनके साथ विशेषाक में सर्वश्री अगर चन्द न इटा, हेम बन्द शास्त्री, अनेक गजाओ ने भी सयम धारण किया। सत्यधर सेठी, डा. कालीचरण सक्सेना, डा. दिगम्बरदास दीक्षा संत हा उन्हे मन.पर्यय ज्ञान प्रकट हो गया। मुख्त्यार, प० मोतीलाल मार्तड आदि ने भदपुर या महिलदो दिन के तपकरण के बाद वे चर्या हेतु अरिष्टनगर पुर को ही तीर्थकर शीतलनाथ की जन्म भमि स्वीकार पहुंचे। वहाँ के गजा पुनर्वसु ने नवधा भक्ति पूर्वक उन्हे किया है। बरो (बड़नगर) के विशाल जैन मन्दिरोग सोलह आहार दिया । उम मगल वेला मे देवो ने रत्न वर्षा की। तीर्थङ्कर प्रतिमाएं स्थापित है। हाँ के शिलालेखो मे वीशआहार के पश्चात् मुनि शीतलनाथ पुन: घोर तप मे लीन नगर (भलसा-विदिशा) को भगवान शीतलनाथ का जन्म हो गर । तीन वर्ष पश्चरण के पश्चात् बेल वृक्ष के स्थान लिखा है। हा. कामताप्रसाद तथा डा.होगनाव नीचे ध्यानस्थ उन्हें पौष कृष्ण चतुर्दशी के दिन पूर्वाषाढ़ ने भी अपने लेखो में विदिशा को भद्दिलपुर स्वीकार मायकाल के समय केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। किया है। आगम से भी यही प्रमाणित होता है। अहिंसा देवताओ ने आकर भगवान के ज्ञान कल्गणक की पूजा वाणी के उक्त अक में गुलाबचन्द पाड्या लिखते है-- कर समवशरण की रचना की। भगवान की दिव्य वाणी "दमवें तीर्थकर शीतलनाथ स्वामी के गर्भ जन्म व तपश्रवण करने देव, मनुष्य, तिथंच नादि सभी अपने-अपने कल्याणक विदिशा (महिलपुर) मे हुए थे।" विदिशा को स्थान पर आ बैठे। भगवान को दिव्यवाणी को सभी ने दक्षिणी सीमा स्थित उद गिरि पर्वत की बीसवी गुफा म पूर्ण मनोयोग से सुना। इसके पश्चात् उनका धर्मचक्र भगवान शीतननाश के सरकारी चरण स्थापित है। प्रवर्तन प्रारम्भ हो गया। विदिशा में प्राप्त प्राचीन शिललिखो म भो विदिशा का ___ अनेक देशो मे भग करते हुए उन्होंने भव्य जीवो नाम भद्दिलपुर व भद्रावती काया: । को आत्मकल्याण का उपदेश दिया। अन्तिम समय श्री विदिशा का प्राचीन गौरव : सम्मेद शिखर पहुंच, योग निरोध सहित प्रतिमा योग महाकवि कानिदम ने "मेघदूत" HE काव्य में धारण कर आश्विन शुक्ल अष्टमी के मगल दिवस, माय- दशार्ण जनपद को पानी विमा का वर्णन किया है। काल की वेला मे, पूर्वाषाह नक्षत्र में समस्त कमी का उग काल मे दशार्ण जापद की पहिचान विनिशा के आस नाश कर परम मोक्ष पद प्राप्त मिया। देवो व नर-नारियो पाग के प्रदेश से की जाती थी। आदिपुगण मे जिस उत्साह एव मनोयोग पूर्वक वान का निर्वाण ल्याणक दशाणं प्रदेश का वर्णन गाया है, वह यही है। ईस्वी पूर्व ममायो जयनाद मे सम्पूर्ण धरती और गगन गंजायमान २ मे ५ शादी तर दणं यद बहुन समृद्ध था और हो उठा। इग देश को गनधानी दिदिगा भी अन्न सम्पन्न एवं तीर्थ र शीतलनाथ का शरीर स्वर्ण यर्ण वनवे गन्दा याताय. यन थी। ' दपुराण में मारत" धनुष ऊँचा था। आयु थी की एक लाख वर्ष पूर्व। . लेखक Afrद्र शास्त्री') इ. हासकागेकामत इनका चिन्ह श्री नरु कल्प-वक्ष है । ब्रह्म यक्ष इनके मेवा है कि महिलपुर पर्तनान पृ० ५६ विदशा ही है। ईमा ब मानवी यक्षिणी इनकी सेविका है। पर्व छठवी शताब्दी में इस भूभाग का यही नाम प्रचलित

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