Book Title: Anekant 1993 Book 46 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 100
________________ श्रीलंका में जैनधर्म और अशोक स्वयं दी थी। यदि यह अनुमति नहीं होती, तो बौद्धधर्म दोनों ही परंपराओं के इतिहास के समुचित ज्ञान के अभाव विदेशों मे नहीं फैल सकता था। में हई जान पड़ती है। यदि कोई बौद्ध सघ महापरिडॉ. ही गलाल जैन (भारतीय संस्कृति मे जैनधर्म का निव्वाणमुत्त पढे, तो यह ज्ञात होगा जि गौतम बुद्ध ने योगदान पृ० ३०६) लिखते हैं - "बराबरी पहाडी की दो अपने शिष्य प्रानन्द को यह निर्देश दिया था कि उनके गुफाएँ अशोक ने अपने राज्य के १०वें वर्ष में और तीसरी धर्म के संघ का मंगठन वैशाली संघ के मगठन के आधार १९वें वर्ष में निर्माण कराई थी।" बराबरी पहाडियां पर किया जाए। इस गणता मे महावीर का जन्म हमा बिहार मे हैं। ये गुफायें बौद्धों के लिए नही अपितु था और वे बुद्ध से आयु मे बड़े किन्तु उनके समालीन आजीविको के लिए निर्मित कराई गई यो जो कि जैन थे। उन्होंने चतुर्विध संध के रूप मे अपने अनुयायियो को धर्म के निकट थे। मगठिन किया था जिनमें मुनि, आपिका (माध्वी), श्रावक प्रसगवश यहां एक जैन कथा का उल्लेख किया जाता और श्राविका अर्थात् गहरथ स्त्री और पुरुष होते है। है जिसका उद्देश्य यह बताना है कि एक बिदी लगा देने आज भी यह मघ व्यवस्था जीवित है। संघ बौद्धधर्म का से कितना अनर्थ हो सकता है। अशोक ने एक पत्र अपने ___ मौलिक लक्षण नहीं है। पुत्र कुणाल के नाम लिखा जिसमे यह कहा गया था कि यदि निष्प रक्षिता मम्बन्धी कथा को छोड़ दें तो भी कुमार अब पढे (अघीयताम्) । परन्तु यह पत्र उसकी बौद्ध यह तथ्य ही उभरता है कि अशोक अपनी पिछ नी और रानी तिष्यरक्षिता के हाथ पड गया। उसने एक बिंदी अगली पीढियो को भाति जैनधर्म के सिद्धांतो मे विश्वास लगाकर अधीयताम् कर दिया। जब यह पत्र कुणाल के रखने के मात्र ही साथ अन्य धर्मों के प्रति महिष्ण था। पास विदिशा पहुचा, तो अशोक के आदेशानसार कृणाल शायद यही कारण है कि उसने अपने शिलालेखों में वाहाण की आखें फोड दी गयी। कुणाल ने सगीत सीखा और श्रमण, आजोधिका (जो जैनधर्म मे बहन अधिक माम्य पानिपुत्र आकर महल के नीचे बैठकर अपना मधुर रखने थे) और निम्रन्थ (जैन) आदि का स्मरण किया है। संगीत प्रारम्भ किया। उसे सुनकर प्रशोक ने उसे महल शिलालेखो की शब्दावनी भी जैनधर्म के अधिक निगट मे बुलवाया किन्तु जब उसे अपने पुत्र की दुर्दशा का है। कुछ उदाहरण है-बाचागुरित, मनोधि, मादव, शुचि कारण माल म हआ, तो उसने तिष्य रक्षिता को जिदा (कोच), धम्म म गलम् (जैन लोग पनि दिन चार प्रकार जला देने का आदेश दिया किन्तु कुछ शान्त होने पर के मगलम् का उच्चारण ज भी करते है)। युद्ध शब्द उसने रानी, उमके पुत्र महेन्द्र और पुत्री सघमित्रा को देश प्रयोग भी जैनधर्म मे friजाता है। प्रसिद्ध पुर। नवनिद निकाला दे दिया और वे श्रीलका पहचे । विमाता के षड-डी० सी० गरकार मामा है -“The Jain stunts arc यत्र सम्बन्धी यह कथा असम्भव तो नहीं लगती है। sometimes called Bauddhas, Kcvlin, : uddha, कुणाल से अशोक ने वर मा.ने को कहा । कुणाल ने अपने Tathagata and Arhat." (P. 29, Select Ins. पुत्र सप्रति के लिए राज्य मांगा और अशोक ने संप्रतिको criptions) अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया तथा अठ वर्षों शोक ने पूरे भारत और गदर या देशो तक तक सप्रति के अभिभावक के रूप में राज्य किया। कुणाल मे मनुष्यो तथा पशुग्री के लिए छायादार पेड लगवात अधा हो गया था यह तो ऐतिहासिक तथ्य है। और चियालय खोले किन्तु श्रीलका मे ऐसा कुछ भी पुरातत्वविद डा. कृष्णद न बाजपेयी ने यह लिखा है नही क्यिा। वह अपर शिलालेखो मे श्रीला का नाम कि तिष्य रक्षिता के जाली पत्र के सम्बन्ध मे सूचना बौद भानहीनता है यह आश्चर्य की बात है। अथ दिव्यावदान में भी उपलब्ध है। अशोक -- ममय में बौद्ध धर्म सम्बन्धी स्पिति का सघ शब्द को लेकर इन शिलालेखो का सम्बन्ध आकलन दक्षिण भारतीय इतिहास के प्रसिद्ध इतिहासकार अशोक से जोड़ा जाता है किन्तु यह घ्राति जैन और बौद्ध नीलकठ शास्त्री ने इस प्रकार लिखा है-"In the davs

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