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केरल में जैन स्थापत्य और कला
- श्री राज मल जैन, जनकपुरी, दिल्ली
यह सहसा विश्वास नही होता कि केरल मे भी जैन सदी में हो चुका था। अत: इससे पूर्व भी केरल मे जनस्थापत्य मौर कला सम्बन्धी कोई सामग्री हो सकती है। धर्म का अस्तित्व मानना अनुचिन नही जान पड़ता। जैन सामग्री तो है किन्तु वह एक तो अल्प है और कुछ मतभेद पुगण इस बात का कथन करते हैं कि श्री एण के चचेरे के घेरे में है। इस विषय पर लिखना वास्तव मे एक भाई और जैनो के २२वें तीर्थकर नेमिनाथ ने जिन्होने कठिन कार्य है फिर भी कारणो और इस विषय पर लेखक गिरनार पर्वत पर निर्वाण प्राप्त किया था, पल्लव देश की धारणा का औचित्य बताते हुए यथासम्भव युक्तिसगत को भी अपने धर्मोपदेश का क्षेत्र बनाया था। उनकी मतियां विवरण देने का प्रयत्न किया जाएगा।
और उनका उल्लेख करते हुए शिलालेख तमिलनाडु में मबसे पहला कारण तो यह धारणा है कि केरल मे अधिक संख्या म पाए गए हैं। वे उनकी लोकप्रियता का जैनधर्म का प्रादुर्भाव अधिक से अधिक भद्रबाह और चन्द्र- प्रमाण प्रस्तुत करते हैं । इसके अतिरिक्त, श्रीलका मे एक गप्त मौर्य के दक्षिण भारत मे आगमन के साथ हमा होगा। पर्वत का नाम भी उनके नाम पर अरिह पता तो यह धारणा उचित नहीं है कि इन मुनियों से पहले प्रश्न हो सकता है कि नेमिनाथ का विहार श्रीलंका
भारत मे जैनधर्म का अस्तित्व नहीं था। जो दि० मे कैसे हुआ होगा वीच मे तो समुद्र है। केरल मे यह भनियो की चर्या से परिचित है वे यह भली भाति अनुश्रत है कि केरल की बहुत-सी धरती समुद्र निगल गया। ममा सकते हैं कि ४६ दोषो से रहित आहार ग्रहण करने कन्याकुमारी घाट से देखने पर अनेक चट्टानें समद्र में से बाल मनि ऐसे प्रदेश मे विहार नहीं कर सकते है जहाँ अपनी गर्दन बाहर निकालती आज भी दिखाई देती जो विधिपक उन्हें आहार देने वाले गहस्थ निवास न करते इस बात का संकेत देती है कि केरल किसी समय श्रीला हो। फिर केवल दोनों हाथो की अजुलि को ही पात्र वना से जुड़ा हुआ था। अरिष्टनेमि और अनय जैन मनि इसी कर दिन में केवल एक बार ही आहार ग्रहण करने वाले रास्ते श्रीलका आते-जाते रहे होंगे। केरल का बारह हजार मुनियो के आहार के लिए जैनियों की बहुत गांव ही यादववंशी है और वह जैनधर्म का असर
विदामानता का आकलन उन मुनियो के है। पार्श्वनाथ (निर्वाण ई से ७७७ वर्ष पूर्व) की ऐतिनायक भद्रबाहु और चन्द्रगुप्त मौर्य ने
और चटगप्त मौर्य ने अवश्य ही कर लिया हासिकता स्वीकार कर ली गई है और उनके प्रभाव को होगा। ईसा पूर्व चौथी शताब्दी मे इन मुनियों का विहार केरल में नागपूजा, पावं मतियों का पाया
मिलनाड और कर्नाटक मे ही हुआ था और केरल वती के मन्दिरों जो कि अब भगवती मन्दिर करलाते में वनों पचे थे यह विचार ही उचित नहीं जान तथा नायर (नाग) जाति की प्रधानता माथि - मम तो केरल तमिलनाडु का ही एक भाग अनुमानित किया जा सकता है। महावीर स्वामी के सबध
कि था और उसका स्वतंत्र अस्तित्व तो आठवी शताब्दी की में अब यह मान लिया गया है कि
... लिखित केरल के विशाल- जीवधर ने उनसे दीक्षा ग्रहण की थी। उनका प्रभाव कास तिहास ग्रन्थ केरलचरित्रम् मे यह स्वीकार किया केरल तक अनुमानित किया जा सकता है। ये सब पोरा. गया है कि ब्राह्मी शिलालेखो के आधार पर यह स्पष्ट है णिक साक्ष्य एकदम मिथ्या नही करे जानकर किरन में बनधर्म का प्रादुर्भाव ईसा पूर्व की दूसरी सब कल्पित हैं तो अनेक देवताओं सम्बन्धी विवरण की