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केरल में जैन स्थापत्य और कला
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चैत्यालय (Mirror Temple) तक के जैन मन्दिरों सादि स्मारक जैसे गुफाएं, गुहा मन्दिर कुडक्कल जोर टोपीका कुछ विवरण यहाँ देने का प्रयत्न किया जाएगा। जैन कल्लु आदि (२) निर्मित मंदिर (Structural temples). स्थापत्य के आदि रूप को ष्टि से यदि विचार किया जाए, केरल के इतिहास में महापाषाणयुगीन अवशेषो का तो यह तथ्य सामने आएगा कि जैनो ने शायद मन्दिरो से विशेष महत्व हैं । डा० सांकलिया ने उनका समय ईसा से भी पहले चरणो (footprince) का निर्माण किया। इस १००० वर्ष पूर्व से लेकर ईसा से ३०० वर्ष पूर्व तक बात की साक्षी उन बीस तीर्थंकरों के चरणचिह्न। से प्राप्त बताया है। इस प्रकार की निमितियां हैं कुडक्कल और होतो है जो कि बिहार में पारमनाथ हिल या सम्मेद- टोपी कल्लु तथा शैल-आश्रय (rock shelters) कुडक्कल शिखर पर उत्कोण है। नेमिनाथ के चरण भी रैवतक या एक प्रकार की बिना हेंडल की छतरी के आकार की रचना गिरनार पर्वत पर आज भी पूजे जाते है । केरल के अनेक होती है। इसमे चार खड़े पत्थरो के ऊपर एक ग्रोधी मन्दिरो तथा पर्वतो पर भी चरणो का अचन पाया जाता शिला रख दी जाती थी। आदिवासी जन इन्हे मुनिमडा है यद्यपि आज वे जैन नही हे किन्तु उनका सम्बन्ध जैन- कहते है जिसका अर्थ होता है नियों की समाधि। इस धर्म से सूचित होता है। इस प्रकार के मन्दिर है- प्रकार की मुनियो की समाधियां केरल मेअनेक स्थानो पर कोडगल्लर का भगवती मन्दिर, कोरडी का शास्ता मदिर, हैं। अरियन्नर, तलिप्परब, मलपपुरम्, आदि कुछ नाम पालककाड का एक शिव मन्दिर इत्यादि । तिरुनेल्ली यहा दिए गए हैं। इनकी संख्या काफी अधिक है। इनका पर्वत पर चरण जो कि अब राम के बताए जाते है। भी ऐतिहासिक अध्ययन आवश्यक है। कालीकट जिले में एक पहाडी पर चरण निन्हे मुसलमान कछ इतिहासकार यह कथन करते हैं कि केरल में बाबा आदम के चरण म.नते है और उसकी जूते निकाल जैन शैलाश्रयों का अभाव है। किन्तु यह कथन तथ्यों के कर वंदना करते है । इन सबा प्रमुख चरण है विवेकानद विपरीत है। अरियन्नर मे ऐसा ही एक शैलाश्रय देखा शिला पर देवी के चरण । यहा यह उल्लेखनीय है कि जा सकता है जो कि इस समय पुरातत्व विभाग के सरक्षण वैदिक धारा के प्रभास पुराण मे यह प्रसग है कि आग्नीध्र में है। यह भमिगत है। वह लेटराइट चट्टान को खोद की सतति परम्परा मे हुए भरत ने जो कि ऋषभदेव के कर बनाया गया है। उसमें नीचे उतरने के लिए मीडिया पुत्र थे अपने आठ पुत्रो को आठ द्वीपों का राज्य दिया था है। उसमे पत्थर की तीन शय्या है जिनके उपर एक गोलाऔर नौवें कुमारी द्वीप का राज्य अपनी पुत्री को दिया कार लगभग तीन फूट का एक रोशनदान भी हवा आने था। भारत के लिए कुमारी नाम तो नही चला किन्तु और वर्षा से बचाव के लिए बना हुआ है। तमिलनाडु मे भारत के अन्तिम छोर का नाम कन्याकुमारी आज तक इसी प्रकार की शिला शय्या पुगलूर नामक स्थान पर चला आ रहा है। केरल मे इस राजकुमारी को स्मृति चेरकाप्पियन जैन साधु के लिए चेर शासक को आनन मातमत्तात्मक समाज के रूप मे या मरुमक्कतायम् उत्तग- चेरल इरम्पोराइ के पौत्र ने बनवाई थी। उसका समय धिकार व्यवस्था के रूप मे जिसके नुसार पिता को ईसा की दूसरी सदी माना जाता है। अत: केरल मे शैल सम्पत्ति पुत्री का प्राप्त होती है, आज भी सुरक्षित जान शय्या का निर्माण इसमें बहुत प्रचलित मानने में कोई पडती है। वैदिक परपरा मे चरण चिह्नो का प्रचलन नही आपत्ति नही होनी चाहिए। के बराबर जान पड़ता है और बौद्ध तो स्तूपों की ओर गृहा मन्दिरों की गणना भी महापाषाणपुगीन स्मारकों उन्मुख है। इसलिए केरल मे ये चरण जैनधर्म के प्रसार में की जाती है। प्राकृतिक गुफाओ मे आराध्य देव की की ओर इंगित करते हैं। श्रवणबेलगोल मे भी भद्रबाहु के स्थापना या उनसे संबधित चित्रण इनकी विशेषता मानी चरण ही अकित हैं।
जाती है। इस प्रकार के दो जैन गुहा मन्दिर केरल में केरल में जन स्मारको के अध्ययन को दो भागों में आज भी पूरे जैन साक्ष्य के साथ विद्यमान हैं यद्यपि अब बांटा जा सकता है--(१) प्राकृतिक या महापाषाणयुगीन वे भगवती मन्दिर कहलाते हैं। सबसे प्राचीन कल्लिल का