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केरल में जैन स्थापत्य और कला
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विशेष काम है विशेषकर नेमिनाथ की बारात का। इसकी एक पुजारी रह गया था। वह गुजारा नहीं होने के कारण छत लकडी की है। इसी मदिर से जुडा आदीश्वर स्वामी इस मन्दिर को पुरातत्व विभाग को सौपकर चला गया। मदिर भी है। उसके गर्भगृह के बाहर ऋषभदेव के यक्ष इसकी रचना मे दो फीट के लगभग मोटी शिलाओ का गोमुख और यक्षिणी चक्रेश्वरी देवी, लक्ष्मी और अन्य प्रयोग किया गया जान पड़ता है जिसकी तुलना हम्पी के देवियो का भव्य उत्कीर्णन काले पाषाण पर किया गया गणिगित्ति मन्दिर की रचना से की जा सकती है। वह है। इसकी दूसरी मंजिल पर वासुपूज्य स्वामी और अन्य निश्च हो प्राचीन मन्दिर है। देवियो का भव्य उत्कीर्णन काले पाषाण पर किया गया पालुमन्नु (दूध का पहाड़) नामक स्थान पर लगभग है। इसकी दूसरी मंजिल पर वासुपूज्य स्वामी और अन्य दो हजार वर्ष पूर्व महाबीर जैसी घटना की एक अनुश्रुति प्रतिमाएं जैन प्रतीको सहित स्थापित हैं । मन्दिर से बाहर प्रचलित है। चौकी और ग्रेनाइट के पाषाण प्राकार से एक कोठ मे कमल पर ऋषभदेव के चरण है। एक अन्य यहां के मन्दिर की प्राचीनता का आभास अवश्य होता कक्ष मे कांच पर शत्रुजय तीर्थ प्रदर्शित है।
है अब उसके ऊपर का भाग साधारण कान जैसा लगता बंगर मजेश्वर मे एक चौमूखा या चतुर्मख मन्दिर है है जिस पर अब मग लौर टाइल्म को छत है। इसका जिसमे चारो दिशाओ मे चार तीर्थंकर प्रतिमाएं स्थापित महत्व टीपू सुलतान के कारण है। टपू ने मन्दिर को हैं। ये तीर्थकर :--आदिनाथ, तीर्थनाथ, चन्द्रनाथ और नष्ट कर दिया और लगभग ६ फीट ऊची मूर्ति ने चार वर्धमान स्वामी। मन्दिर छोटा है। उसका भी जीर्णोद्वार खड हो गए। उसे नदी प्रवाहित कर दिया गया। हा है। वैसे यह सालहवी सदी का बताया जाता है। पुरातत्व विभाग ने उसके एक खई को निकाल कर यह अब भी पूजा स्थान है।
कोझिकोड संग्रह लय मे रख दिया है। प्रस्तुत लेखक को केरल के कश्मोर वायनाड मे मानदवाडी मे एक सप्न फणम डि पीतल की एक छोटी पार्श्व मूति दिखाई आदीश्वर स्वामी मन्दिर है जो मोर्ययुगीन था ऐसा बताया गई जिसवे दो फणो को टीपू सुलतान के आक्रमण के समय जाता है किन्तु उसे गिराकर नया मन्दिर बना लिया गया नष्ट कर दिया गया था। यहा नव ग्रह, नागफण यक्ष आदि है। उसकी स्मृति में एक पाषाण सुरक्षित रखा गया है भी प्रदाशत है । मन्दिर पार्श्वनाथ का है। जिस पर एक नर्तकी का धुंधला-सा अकन दिखाई देता हाल ही में पुलियारमला में एक भव्य मन्दिर का है। स्थानीय विश्वास मिथ्या भी नहीं दिखाई देता क्योकि निर्माण किया गया है जो कि अनंतनाथ को समति है। मन्दिर की ओर जाते समय ही पापाण को क्रमशः ऊँची इसको भुडे पर वीणा वादिनी सरस्वती, ब्रह्मदेव और होती चली गई परतें स्पष्ट दिखाई देती है। वह २००० सरस्वती की लगभग चार फीट ऊची प्रतिमाए स्थापित वर्ष प्राचीन बताया जाता है। वर्तमान मन्दिर में ऋषभ- हैं। पन्दिर म श्रन-कध, धर्मचक्र, पद्मावती देवी एवं देव को लगभग तीन फुट ऊची प्रतिमा मूलनायक के रूप फणमडित पावनाय, अनतनाय, आदीश्वर स्वामी और में है। उसमे ताबे का रत्नत्रय, पीतल का नदीश्वर आदि पचपरमेष्ठी की मतियां आदि विराजमान की गई है।
बाहरी प्रकोष्ठ में प्राकृतिक दृश्यो का भी मोहक चित्रण सुलतान बत्तारी वह स्थान है जहां टीपू सुलतान की है। फोज की छावनी थी। यहा एक जैन मन्दिर ध्वस्त अबस्था इस जिले के एक काफी फार्म गृह में रत्नत्रय विलास मे है जो लगभग एक हजार वर्ष प्राचीन माना जाता है। नामक एक भवन है। उसमे एक चैत्यालय में पार्श्वनाथ उसके ऊपरी भाग पर पेड़ पौधे उग आए है । उसके अनेक और पद्मावती देवी की सुन्दर मतिया है। इसके ध्यान स्तम्भों पर तीर्थकर मनिया उत्कीर्ण है। नागपाश भी कक्ष में विद्युन और दर्पण की महायता से विभिन्न कोणो ले जा सकते हैं। उसके गमगह में अब कोई मूति नहीं और हरे, पीले, लाल और सफेद रगो के बल्बो तथा है किन्तु बताया जाता है कि करीब सो वर्ष पूर्व केवल ट्यूबलाइट का प्रकाश डालकर अनत प्रतिमाए स्वर्ण,