Book Title: Amit Rekhaye
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 21
________________ अमिट रेखाएं महाप्राण को साधना अब शीघ्र ही पूर्ण हो रही है. उसके पश्चात् मैं तुम्हें पूरा समय दूंगा। _स्थूलभद्र ने पुनः जिज्ञासा प्रस्तुत की, भगवन् ! कितना अध्ययन कर चका हूँ और कितना अवशेष है ? ___ आचार्य भद्रबाहु ने स्मित मुस्कान के साथ उत्तर दिया -- अभी तक तुमने बिन्दु ग्रहण किया है और सिन्धु . अवशिष्ट है। स्थूलभद्र पहले से अधिक उत्साह के साथ अध्ययन में जुट गये । जब कुछ दिनों के पश्चात् भद्रबाहु के महाप्राण ध्यान की साधना सम्पन्न हुई तब तक स्थूलभद्र दो वस्तु कम दस पूर्वो का अध्ययन पूर्ण कर चुके थे। __ महाप्राण ध्यान की साधना सम्पन्न होने पर आचार्य भद्रबाहु विहार कर पाटलिपुत्र पधारे और नगर के बाहर उद्यान में ठहरे । मुनि स्थूलभद्र पास के लघु देवकुल में ध्यान कर रहे थे । यक्षा, यक्षदत्ता आदि सातों बहनें जो साध्वियां बन चुकी थीं वे भाई के दर्शन के लिए आई। वे आचार्य भद्रबाह के आदेश से लघु देवकुल में गई । बहनों को आती हुई दूर से देखकर स्थूलभद्र को ज्ञान का अभिमान आगया और चमत्कार दिखाने के लिए सिंह का रूप बनाया । सातों ही बहने वहां आई, पर भाई के स्थान पर सिंह को देखकर डर गई। उन्हें मन में शंका हुई कि कहीं भाई को सिंह खा तो नहीं गया। वे उलटे पैरों आचार्य के पास आई, और आचार्य से सम्पूर्ण वार्ता निवेदन की। आचार्य ने उपयोग लगा कर कहा-वह सिंह नहीं, तुम्हारा ही भाई है, अब जाओ और दर्शन करो। Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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