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आचार्य स्थूलभद्र विच्छिन्न हो जायेगा। केवलज्ञान तो पूर्व ही नष्ट हो गया है और पूर्वो का ज्ञान भी न रहा तो धर्म संघ किस प्रकार चल सकेगा । जैन-संघ के भविष्य को सोचकर ही आपको निर्णय करना है।
भद्रबाहु ध्यान मग्न हुए, कुछ क्षणों के पश्चात् उन्होंने कहा-मैं एक शर्त पर अगले पूर्वो की वाचना दे सकता हैं, वह यह कि स्थूलभद्र इन पूर्वो की वाचना अन्य किसी साधु को नहीं दे सकेगा, यदि यह अभिग्रह स्वीकार्य है तो वाचना प्राप्त हो सकती है। ___मुनि स्थूलभद्र ने आचार्य श्री की शर्त को सहर्ष स्वीकार किया ! आचार्य भद्रबाह ने पुन. वाचना देनी प्रारम्भ की ! कुछ ही समय में मुनि स्थूलभद्र चौदह पूर्वो का समग्र ज्ञान प्राप्त कर गीतार्थ हो गए। आचार्य भद्रबाहु ने मुनि स्थूलभद्र को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया और वे स्वर्गस्थ हुए। __ आचार्य स्थूलभद्र विचरते हुए एक बार श्रावस्ती के वाहर उद्यान में पधारे। हजारों नागरिक आचार्य के प्रवचन को सुनने के लिए उपस्थित हुए। आचार्य स्थूलभद्र का एक गृहस्थाश्रम का मित्र धनदेव वहां रहता था। आचार्य ने देखा मेरा प्रिय मित्र धनदेव क्यों नहीं आया है। संभव है, वह बीमार हो या कहीं बाहर गया हुआ हो, अतः आचार्य स्थूलभद्र स्वयं उसके घर पर पधारे । धनदेव की पत्नी धनेश्वरी ने आचार्य प्रवर का स्वागत किया। धनेश्वरी देवी से आचार्य प्रवर ने पूछा-धनदेव कहां है ? वह दिखलाई नहीं दिया ?
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