Book Title: Amit Rekhaye
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 107
________________ २१ | पृथक्-पृथक् सजा बादशाह अकबर अपने सिंहासन पर आसीन थे । वजीर- दरबारी भी अपने-अपने आसनों पर जमे हुए थे । उस समय कोतवाल ने बादशाह के सामने एक अपराधी उपस्थित किया हजुर, इसने चोरी की है ।' बादशाह ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा और मधुर स्वर में कहा - 'यह कार्य तुम्हारे सम्मान के योग्य नहीं है, जाओ, अच्छी तरह से रहो । वह चला गया ! दूसरे अपराधी को लाया गया । उसने भी चोरी की थी। बादशाह ने उसे अच्छी तरह देखा, कुछ अपशब्द कहकर कहा- जाओ मेरे सामने से । वह चला गया । तीसरे अपराधी को लाया गया । उसने भी चोरी का ही अपराध किया था, बादशाह ने उसे भी सम्यक् प्रकार से देखा, सिपाही से उसके सिर पर सात जुते लगवाये और धक्के देकर उसे महल से बाहर निकाल दिया । तब चतुर्थ अपराधी को लाया गया। उसने भी चोरी की थी । बादशाह ने उसे भी ऊपर से नीचे तक देखा । Jain Education Internationa For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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