________________
१०६
अमिट रेखाएं
सकते हैं तो मैं सहर्ष आपसे अभ्यर्थना करती हूं कि आप दूसरा विवाह करलें।
सुभगे ! यह बात नहीं हैं। चिन्ता का रहस्य कुछ और हैं। मैं अपने लिए चिन्तित नहीं हूँ, तुम्हारे लिए चिन्तित हूँ-युवक ने गंभीर मुद्रा में कहा।
आर्यपुत्र ! आप मेरे लिए किसी प्रकार की चिन्ता न करें। मैंने जो प्रतिज्ञा ग्रहण की है वह सोच विचारकर की है-बाला ने गंभीरता और दृढ़ता से कहा। ___ प्रिय ! मैंने भी आचार्य वर से शुक्ल पक्ष में ब्रह्मचर्य का नियम ले रखा है, जब तुम अपने पर काबू पा सकती हो तो क्या मैं अपने पर नहीं पा सकता ? जिस पथ पर आत्मबल की न्यूनता के कारण हम नहीं बढ़ सके थे। उस महामार्ग पर आज हमें एक दूसरे का बल पा कर बढ़ना है, हम मंत्रों की साक्षी से एक दूसरे से बन्धे हैं। जीवन के महान् लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमने विवाह किया है, तो हाथ आगे बढ़ाओ, आज से हम अपने दाम्पत्य जीवन में भाई-बहिन की पवित्रता की प्रतिष्ठा करेंगे । अवश्य हमारा यह पावन व्रत जगत में एक अनूठा और अमर आदर्श होगा। इस महान संकल्प पर आकाश में असंख्य-असंख्य तारे चमक कर बधाईयां दे रहे थे।
Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org