Book Title: Amit Rekhaye
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

View full book text
Previous | Next

Page 124
________________ परिवाद और सम्राट १११ नहीं है, मैं अकेली हूँ, असहाय हूँ, क्या आप मेरी सहायता करने के लिए आये हैं। वह आगे कुछ न कह सकी, सिसक-सिसक कर रोने लगी। बजीर ने कहा-ये जोधपुर के दीवान खिसिंह हैं, मेरे दोस्त हैं, मुझे को बादशाह बहादुरशाह ने तुम्हारे कार्य की जांच करने के लिए नियुक्त किया है। बादशाह ने कहा है-सात दिन में तुम सही निर्णय नहीं करोगे तो मैं सातवें दिन उस पापिनी को फांसी चढ़वा दूंगा, उसने शाही कुल में कलंक लगाया है। मैं इसी की जांच करने के लिए तुम्हारे पास आया हूँ। उसकी आंखों से आंसुओं की अविरल धारा बह रही थी। मृत्यु के भयानक भय से वह कांप रही थी, तथापि धैर्य धारण कर उसने कहा-वजीर, जी मैं साफ हृदय से कहती हैं कि मैं पाक हैं, मैंने कभी भी निंद्यकर्म नहीं किया, कुत्सित और घृणित आचरण नहीं किया। तथापि क्यों गर्भ रह गया, मैं कह नहीं सकती, उसने सिर वजीर के चरणों में रख दिया, वह प्राणों की प्रार्थना करने लगी, इस निरीह अबला बाला को बचाओ, बचाओ ! उसको आश्वासन देने के लिए वजीर ने कहा, बेटी ? घबरा मत, तू फिक्र मतकर, तुम्हारा कोई अनिष्ट नहीं होगा। मैं पूर्ण प्रयत्न करूंगा, ये शब्द कहते-कहते बूढ़े वजीर की आंखों में भी आंसू आ गये। हे भगवान ! मेरा तो इस करुण दृश्य को देखकर हृदय काँप गया, रह-रह कर उस बाला की दर्द भरी पुकार Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140