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अमिट रेखाए पक्व हैं । तुम जब राह में पड़े हुए पत्थर व कांच के टुकड़ों को हटाकर किनारे नहीं कर सकते तब तुम से मैं यह कैसे आशा रखू कि समाज-परिवार और राष्ट्र की राह में आए विघ्न और बाधाओं की चट्टानों को तुम दूर कर सकोगे । शिक्षा का अर्थ पुस्तके कंठाग्र कर लेना नहीं है
और न किसी विषय पर लच्छेदार भाषा में भाषण दे देना ही हैं किन्तु शिक्षा वह है जो जीवन को सजाती हो संवारती हो और मुक्ति प्राप्त कराती हो “सा विद्या या विमुक्तये ।' __ तृतीय शिष्य के सिर को चूमते हुए आचार्य ने कहावत्स ! तुम परीक्षा में पूर्ण सफल हो, तुम्हाराज्ञान निरन्तर बढ़ता रहे, शुक्ल पक्ष के चंद्र की तरह तुम्हारी कीर्ति कौमुदी प्रतिपल प्रतिक्षण बढ़ती रहे । मेरी शुभाशीषः तुम्हारे साथ है, तुम जाओ, और खूब चमको ।
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