________________
| परिव्राट और सम्राट आज मुख कमल क्यों मुरझाया हुआ है, चेहरा प्रसन्न नहीं है, किस चिन्ता सांपिनी ने डसा है ? परिवाट ने एक दीवान से पूछा। __ क्या पूछते हैं गुरुदेव, अनर्थ, महाअनर्थ ! कहते-कहते गला रूंध गया, आगे शब्द जिह्वा के बाहर नहीं निकल सके, आँखें आंसुओं से डबडबा गई।
आचार्य श्री ने कहा-मैं समझ गया तुम्हारे दुःख का कारण ।
किस प्रकार समझ गये, मेरे मन की बात ! मेरे कष्ट का कारण किसी को भी पता नहीं, और फरमा रहे हैं कि मैं समझ गया, तो बतलाइये, आप क्या समझ गये हैं ? दीवान खिसिंह ते आशा कि दृष्टि से जैनाचार्य पूज्य श्री अमरसिंह जी महाराज की ओर देखा।
निरपराध राज कन्या को मौत के घाट उतारने की घटना ने ही तो तेरे दयालु हृदय को द्रवित किया है ?
दीवान आचार्य श्री की बात सुनकर अवाक् था ।
Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org