Book Title: Amit Rekhaye
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 117
________________ १०४ अमिट रेखाएं है। उसमें अनन्तशक्ति है सामर्थ्य है। मैं आपको पूर्ण विश्वास दिलाता हैं कि भोगों की चकाचौंध में कृत संकल्प से विचलित नहीं होऊंगा–युवक ने विनम्र निवेदन किया। युवक की प्रशस्त भावना को देखकर "जहा सुहं देवाणुप्पिया" के रूप में आचार्य प्रवर ने स्वीकृति प्रदान की। युवक प्रतिज्ञा ग्रहण कर घर लौट आया। ___ x x शीतल मन्द सुगन्धमय समीर के साथ ही नगर में ये सुखद समाचार फैल रहे थे कि सती समुदाय का आगमन हुआ है, भावुक भावुक भक्त-भ्रमर सद्गुणों की सरस सौरभ ग्रहण करने के लिए पहुँचे । सतीजी ने अन्धकार और प्रकाश का गंभीर विश्लेषण करते हुए कहा-अन्धकार के पुद्गल अशुभ होते हैं और प्रकाश के पुद्गल शुभ होते हैं । मन-वाणी और कर्म जब अशुभ कार्य की ओर प्रवृत्ति करते हैं विकार और वासनाओं की ओर बढ़ते है, तब आत्मा अन्धकार की ओर बढ़ता है, जब वे शुभ में प्रवृति करते हैं, त्याग वैराग्य को ग्रहण करते है। संयमसाधना, तप, आराधना और मनोमन्थन करते हैं तब आत्मा प्रकाश की ओर बढ़ती है।। भक्त-भ्रमर जब उड़ गये तब एक कुमारिकाने आगे बढ़कर वंदना करते हुए कहा—सद्गुरुणी जी ! पाप अन्धकार है विकार अन्धकार है, वासना अन्धकार है । मैं पक्ष अन्धकार के अन्धकार की ओर नहीं बढ़ेगी, कृष्ण पक्ष में आत्मा को कृष्ण न बनाऊँगी। Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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