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| कला का देवता एक शिष्य गुरु के पास भिक्षा लेकर पहुंचा और भिक्षापात्र एक-एक कर दिखलाने लगा। गुरु ने कहावत्स ! आज इतना विलम्ब कैसे हुआ ?
शिष्य ने विनम्र-वाणी से निवेदन किया-गुरुदेव ! मैं एक ऊंची अट्टालिका में पहुँचा, घर की अधिकारिणी ने मेरा स्वागत किया और एक लडड मुझे दिया। लड्डू लेकर ज्यों ही मैंने वहां से प्रस्थान किया त्यों ही मानस में ये विचार जागृत हुए कि यह लड्डू तो गुरुदेव श्री के काम आयेगा। लड्डू की मनोमुग्धकारी सुवास से मेरा मन विचलित हुआ और मैंने शीघ्र ही वैक्रियलब्धि से बालक का रूप बनाया और लड्डू की कामना से वहाँ पहुँचा, पूर्ववत् ही घर की अधिकारिणी ने एक लड्डू मुझे और दिया। और वहां से चलते समय फिर-विचार आया कि यह लड्डू तो मेरे साथी को मिलेगा, मैं तो यों ही लड्डू से वंचित रहूँगा अतः मैंने तीसरी बार एक वृद्ध का रूप बनाया और लड़खड़ाता हुआ पहुँचा, और तीसरा लड्डू लेकर आया । अतः विलम्ब हो गया" ।
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