Book Title: Amit Rekhaye
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay
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पृथक्-पृथक् सजा
६५
बादशाह ने आदेश दिया इसका काला मुंह कर के और गधे पर चढ़ाकर शहर भर में घुमाया जाये।
चारों अपराधी का अपराध एक था किन्तु दण्ड अलगअलग था। सभी सभासदों के मन में तर्क उठ रहे थे कि यह क्या है। __बादशाह से छिपा न रह सका, बादशाह ने पूछाआप लोगों को कुछ कहना है ।
सभासद्-जहांपनाह ! आपके न्याय में हमारा पूर्ण विश्वास है, पर हमें यह समझ में नहीं आया कि जब सभी का अपराध एक है तो दण्ड में जमीन आसमान का अन्तर क्यों है ?
इस रहस्य को जानने के लिए उन चारों के पीछे एकएक गुप्तचर रखता हूँ। जिससे आपको सही स्थिति का ज्ञान हो सके।
दूसरे दिन बादशाह अकबर सिंहासन पर बैठा, चारों गुप्तचरों ने अपनी-अपनी रिपोर्ट उनके सामने पेश की। एक ने निवेदन किया-जहांपनाह ! जिसे आपने यह कहकर विदा किया था कि यह कार्य तुम्हारे सम्मान के योग्य नहीं है। उसने यहां से घर जाकर विष खा लिया और आत्म हत्या करली।
जिसे आपने अपशब्द कहकर निकाला था, वह अपना सब सामान लेकर दिल्ली छोड़कर चला गया। __तीसरे अपराधी के सिर पर सात जूते लगवाये थे, वह अपने घर गया और कमरा बंद कर बैठ गया है।
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