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अमिट रेखाएं
वीणा-अरे क्या कहा आपने ! राजा के मोर को आपने ही मारा है। राजद्रोही को मैं अपने घर में किस प्रकार स्थान दे सकती हूं। आपके कारण मेरे सारे बालबच्चों को मरना पड़ेगा, और मुझे भी। इसलिए आप शीघ्र ही मकान छोड़कर चले जाइए। यदि आप मकान में ही छिपकर रह गये तो मुझे बाध्य होकर अपने परिवार की सुरक्षा के लिए राजा साहब को सूचना करनी होगी।
प्रवीण-वीणा ! घबराओ नही, मेरे कारण से तुम सभी को कष्ट हो ऐसा मैं नहीं करूंगा। लो यह मैं चला, तुम घर में आनन्द से रहो।
प्रवीण सीधा ही घर से दुकान पर पहुँचा। दुकान पर बड़े मुनीमजी बैठ थे। प्रवीण ने मुनीमजी को एकान्त में लेजाकर कहा, देखिए मेरी बद्धि कुण्ठित हो गई और मैंने राजा के मोर को मार दिया, अब मुझे राजा सूली पर चढ़ाएगा मैं आपसे प्राणों की भिक्षा मांगता हैं, तुम मुझे कहीं छिपा दो।
मुनीम ! सेठ साहब । आपने मोर को मारकर बहुत बड़ी भूल की है आप जानते हैं मेरे भी पांच बाल बच्चे हैं, आपके कारण मेरे को राजा के कोप का भाजन बनना पड़े, यह कहां तक उचित है ? मेरे में यह सामर्थ्य नहीं है। आप अन्यत्र पधारिए।
प्रवीण --- मुनीमजी । आप चिन्ता न करें, मैं जाता हूँ ।
प्रवीण ने जहाँ मोर को छिपाया था वहां गया और उसे लेकर राजा के पास पहुंचा। राजा के हाथों में मोर को थमाते
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