________________
अमिट रेखाएं
की, पर वह कहीं न मिला, राजा चिन्ता के सागर में गोते लगाने लगा।
प्रवीण राजमहल में पहुँचा और राजा को एकान्त में लेजाकर कहा राजन् । मेरे से एक भयंकर अपराध हो गया है । मैंने राजकुमार को मार दिया है, आप मुझे जो भी दण्ड देना चाहें सहर्ष देवें। __ राजा ने बहुत ही गंभीरता से कहा-आप राजपुत्र को कभी भी मारने वाले नहीं हैं, तथापि भावों के वश इस प्रकार हो गया है तो अब चिन्ता न करें और साथ ही यह बात अन्य किसी को न कहें। आप आनन्द से जाइये।
प्रवीण घर पर आया, और आँखों से आँसू बहाते हुए उसने पत्नी से कहा-मेरे से एक भयंकर भूल हो गई है, मैंने राजकुमार को मार दिया है।
पत्नी ने कहा--पतिदेव ! आप चिन्ता न करें, मेरे रहते हुये आपका बाल भी बांका नहीं हो सकता, यदि राजकर्मचारी आयेंगे तो मैं कह दूगी कि मैंने मारा है। सारा अपराध मेरा है।
प्रवीण घर से दुकान पर आया उसने वही बात मुनीम से भी कही । मुनीम ने कहा सेठ साहब! आप चिन्ता न करें मैंने आपका नमक खाया है, जब तक मैं जीवित हूं, वहाँ तक आपको कोई भी कुछ भी कष्ट नहीं दे सकता। मैं राजकर्मचारियों से स्पष्ट शब्दों में कह
Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org