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परीक्षा
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हुए बोला, लीजिए, आपका यह प्यारा मोर । मैंने पिता श्री की अन्तिम शिक्षा की परीक्षा के लिए ही यह सारा प्रपंच किया था, आप मोर संभालिए। अब मैं आपका राज्य छोड़कर जा रहा हूं क्योंकि जहां का राजा अपना न हो वहां मुझे नहीं रहना है ! राजा ने बहुत ही इन्कारी की, पर वह न माना।
घर आकर वीणा से कहा कि मैंने पिताजी की अन्तिम शिक्षा के अनुसार तुम्हारी परीक्षा ली थी। मैंने मोर नहीं मारा था, वह तो मैं राजा को दे आया हूं। तुम्हारा घर संभालो मैं विदेश जा रहा है। दुकान आदि का संचालन भी तुम्हें ही करना है।
वीणा ने बहुत मनुहार की, पर प्रवीण रुका नहीं, मुनीम जी को सचेत कर चल दिया।
वह एकाकी महाराष्ट्र में पहुँचा । प्रारंभ में उसने एक सेठ के यहां पर नौकरी की। कुछ पैसा कमाने के पश्चात्, उसने एक स्वतंत्र दुकान खोलली। भाग्य और पुरुषार्थ के कारण उसने कुछ ही दिनों में लाखों की सम्पत्ती कमाली, और एक सुयोग्य कन्या के साथ उसका पाणिग्रहण भी हो गया। वहां के राजा के साथ भी उसका मधुर सम्बन्ध हो गया।
एक दिन उसने सोचा की जरा परीक्षा करलू । परीक्षा के लिए उसने एकाएक राजकुमार को अपने मकान में छिपा दिया। तीन दिन तक राजा ने राजकुमार की शोध
पहुंचा।
पर नौकरी
उसने
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