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आनन्द कहां ने कहा-संध्या होने जा रही है अब आगे बढ़ना उचित नहीं है। इसी पास की धर्मशाला में हम ठहर जायें तो कितना अच्छा रहेगा, यह धर्मशाला हर दृष्टि से सुरक्षित
सेठ ने ठग के प्रस्ताव का समर्थन किया, और वे दोनों उसी धर्मशाला में खा पीकर सो गये। ठग ने विचारा कि कहीं सेठ को मेरी नियत पर सन्देह न हो जाय एतदर्थ वह निद्रा का नाटक करने लगा।
सेठ को ज्यों ही गहरी निद्रा आई त्योंही वह उठ बैठा। धीरे से सेठ के बिस्तर व जेब को टटोलने लगा। पर उसे एक भी पैसा प्राप्त नहीं हुआ, उसकी सभी आशा निराशा में परिणित हो गई, मुंह लटकाये, करवटें बदलते हुए वह भी सो गया।
उषा की सुनहरी किरणे ही मुस्कराने लगी त्योंही वे दोनों अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़े ! वार्तालाप करते हुए ठग ने कहा - बन्धुवर ! तुम बारह वर्ष तक विदेश में रहे हो, वहां से कुछ कमाकर घर लौट रहे हो, या यों ही खाली हाथ लौट रहे हो?
सेठ-मित्र ! जितना भाग्य में होता है उतना ही तो मिलता है, मैंने वहां केवल भाड़ ही नहीं झौंका है, कुछ कमाया भी है, जिसे लेकर मैं अपने बाल बच्चों से मिलने जा रहा हूँ।
धन की बात को सुनकर ठग के चेहरे पर प्रसन्नता की
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