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आनन्द कहां?
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साथ इसी कारण से आया था, मैंने दो रात तक इस गठरी को ढूंढा, पर वह मुझे कहीं भी उपलब्ध नहीं हुई। अब आप अपने घर आ गये हैं, अतः आपको अब कोई खतरा भी नहीं है, कृपया बताइये इसे आप रात में कहां रखते थे।
सेठ ने मुस्कराते हुए कहा-इस रहस्य का उद्घाटन मैं तभी करूंगा जब आप यह प्रतिज्ञा ग्रहण करें कि मैं भविष्य में किसी के धन का अपहरण नहीं करूंगा।
ठग ने जब प्रतिज्ञा ग्रहण की तब सेठ ने कहा-प्रथम दर्शन में ही मुझे यह अनुभव हो गया था कि आप किस प्रकार के व्यक्ति हैं। मैंने सोचा-तुम रात भर मेरी सारी वस्तुएं संभालोगे, किन्तु अपनी वस्तुएं नहीं देखोगे धन की अन्वेषणा के लिए रात भर जागते रहोगे अतः दूसरा कोई चोर भी नहीं आ सकेगा, इसलिए मैं यह धन की गठरी जब तुम इधर-उधर पेशाब आदि के लिए जाते तो मैं धीरे से तुम्हारे सिरहाने के नीचे रख देता था। रात में यह पोटली तुम्हारे पास ही रही थी, पर तुम्हारा ध्यान उधर गया ही नहीं।
ठग के आंखों में आँसू आ गये, हाय जो धन मेरे ही पास था उसे मैंने तुम्हारे पास हूँढा ।
आज का मानव भी उस ठग की भांति भौतिक पदार्थों में सुख की अन्वेषणा कर रहा है पर वह आनन्द बाहर नहीं अपने अन्दर ही है।
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