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भक्त रैदास
२५.
आप गंगा को समर्पित करें, पर शर्त यह है कि यदि गंगामाता स्वयं हाथ फैलाएं तो दें, अन्यथा नहीं।।
पण्डित का रोष भड़क उठा, मूर्ख कहीं के, आज दिन तक बड़े-बड़े ऋषि और महर्षियों के लिए भी गंगा ने हाथ नहीं पसारे, क्या वह तेरी सुपारी के लिए हाथ पसारेगी।
भक्त रैदास ने उसी शान्ति के साथ कहा- यदि गंगामैया हाथ न पसारे तो मेरी सुपारी पुनः ले आइएगा, क्योंकि आपको पुनः अपने घर लौटने का रास्ता तो यही है न ।
पण्डित मन ही मन में रैदास की मूर्खता पर हंस रहा था । वह सुपारी लेकर चल दिया। गंगा-स्नान से निवृत्ति के पश्चात् उसने सुपारी की परीक्षा के लिए हाथ में सुपारी लेकर कहा-गंगा मैया ! हाथ फैलाओ, भक्त रैदास की सुपारी ग्रहण करो।
पर पण्डित देखता ही रह गया, उसी समय गंगा में से एक हाथ बाहर आ गया। उच्च स्वर में आवाज हुई-- मेरे भक्त की सुपारी मुझे दो, और मेरी और से यह कंगन रैदास को दे देना। ___ कंगन बहुमूल्य हीरों से जड़ा था। उसकी कीमत करोड़ों की थी। कंगन को देखकर पण्डित का मन ललचाया। उसने अपने घर जाने का मार्ग ही बदल दिया। कंगन रैदास को देने के बदले वह उसे अपने घर ले आया। सभी ने तीर्थयात्रा की सफलता पर उसे बधाई दी। पण्डित ने अपने वृद्ध पिता को कंगन दिखाते हुए कहा-देखिए
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