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सन्देह की मुक्ति
गति-विधियों को जानने के लिए वह भी धीरे से उसके पीछे हो गया। अंधेरी रात थी, भयानक जंगल था और अकेली दुलहिन को इस प्रकार नदी की ओर जाते हुए देखकर उसके मन में अनेक प्रश्न उबुद्ध हो रहे थे, विना किसी आहट के वह उसका अनुगमन कर रहा था। दुलहिन नदी के तट पर पहुँची, उसने झाड़ियों के बीच में शव पड़ा हुआ देखा, उसने घसीट कर बाहर निकाला, उसकी जांघ को ध्यान पूर्वक देखा, उसे ज्ञात हुआ कि यहां टांके लगे हुए हैं अपने पास की छुरी से उसे चीर कर । चार अनमोल रत्न निकाल लिये, रत्नों को लेकर, नदी में स्नानकर वह पुनः अपने शिविर में आकर सो गई। उसे सन्देह ही नहीं था कि उसका कोई पीछा कर रहा है।
दुल्हे ने जब यह देखा तो उसे यह विश्वास हो गया कि उसकी पत्नी डायन है, उसने मुर्दे के मांस को खाया है, यदि कभी इसे इस प्रकार मांस न मिलेगा तो यह मुझे खा जायेगी। उसकी सारी प्रसन्नता समाप्त हो गई। उसके सारे रंगीन सपने एक दम मिट गये ।।
दुलहिन ससुराल पहुंची, उसने मन में अनेक कल्पनाएं संजोई थी, पर पति की सख्त नाराजगी देखकर वह सहम गई, उसने बहुत चिन्तन किया, पर कोई भी कारण उसे ज्ञात न हो सका।
दिन पर दिन बीतते चले गये, पर दोनों का दुराव ज्यों का त्यों बना रहा। सेठ और सेठानी ने अनेक प्रयत्न किये, पर कुछ भी सुखद परिणाम नहीं आया। एक दिन
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