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अमिट रेखाए
राजा भर्तृहरि ने उस फल को ग्रहण किया और उसके बदले में ब्राह्मण को भरपूर दक्षिणा देकर उसको आर्थिक संकट से सदा के लिए मुक्त कर दिया । भर्तृहरि महलों में जाकर ज्यों ही उसे खाने के लिए तत्पर हुए त्यों ही उन्हें विचार आया कि इस फल को खाकर मैं अमर हो जाऊंगा तो मेरी धर्मपत्नी जिसके अभाव में एक क्षण भी मुझे अच्छा नहीं लगता है ! यदि वह नहीं रही तो मेरा लम्बा जीवन भी नीरस हो जायेगा । अतः इसे मैं अपनी प्रियरानी को अर्पित कर दूँ जिससे वह दीर्घकाल तक जी सके
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भर्तृहरि को अपने जीवन की अपेक्षा रानी का जीवन अधिक मूल्यवान प्रतीत हुआ ! वह फल लेकर रानी पिंगला के पास पहुंचा। और अपने हृदय के अपार अनुराग को प्रदर्शित करता हुआ वह फल रानी को प्रदान किया ।
रानी फल को पाकर फूली न समाई । राजा राज सभा में चला गया। रानी अन्य व्यक्ति में अनुरक्त थी । उसने सोचा अमर फल खाकर में अमर बन जाऊंगी, पर मेरा प्रेमी हस्तिपालक यों ही रह जायेगा। रानी को अपने जीवन की अपेक्षा हस्तिपालक का जीवन अधिक महत्वपूर्ण लगा । उसने उसी समय हस्तिपालक को बुलाया और अपने स्नेह को दर्शाती हुई वह फल उसे भेंट किया । हस्तिपालक बहुत ही प्रसन्न हुआ । और उस फल को लेकर अपने घर
आ गया ।
हस्तिपालक के आसक्ति का केन्द्र रानी नहीं किन्तु
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