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अमिट रेखाएं
लिखा है, मैं सोच रहा था कि विद्वदवर्ग मेरे ग्रन्थ को मान्य करेगा, उसकी मुक्त कंठ से प्रशंसा करेगा परन्तु तुम्हारे ग्रन्थ को देखकर मेरी आशा पर पानी फिर गया। तुम्हारे ग्रन्थ में भाषा का लालित्य है, भावों की सुन्दर और सरस अभिव्यक्ति है और शैली की प्रौढ़ता है। तुम्हारा ग्रन्थ सूर्य के समान है तो मेरा ग्रन्थ नन्हे दीपक के समान है। तुम्हारे इस ग्रन्थ को एक बार विद्वान् देख लेंगे, तो मेरे ग्रन्थ को कोई भी विद्वान् पसन्द नहीं करेगा।" इसी अधम-भावना के कारण ही मेरा चेहरा म्लान हो गया है। __ चैतन्य-मित्र ! तुम चिन्ता न करो, मेरा ग्रन्थ तुम्हारी कीर्ति में बाधक नहीं बनेगा। जिस ग्रन्थ से मित्र के हृदय को कष्ट हो, वह ग्रन्थ ही किस कामका ? लो, मैं तुम्हारे सामने ही इस ग्रन्थ को सरिता की सरस धारा में बहा देता हूँ।
गदाधर चैतन्य का हाथ पकड़ने के लिए आगे बढ़ता है । तब तक ग्रन्थ नदी में डूब जाता है।
गदाधर ने कहा-मित्र तुमने यह क्या कर दिया तुमने इस प्रकार की अनमोल कृति को भित्र के लिए पानी में डबा कर नष्ट कर दिया । तुम्हारे त्याग की अमर कहानी इतिहास के स्वर्ण पृष्ठों पर चमकेगी और मेरी अधम मनोवृत्ति पर लोग थूकेंगे।
चैतन्य-मित्र ! तुम प्रसन्न रहो तुम्हारी प्रसन्नता में ही मेरी प्रसन्नता है। हम दोनों एक ही गुरु के शिष्य हैं। तुम्हारा नाम ही मेरा नाम है, अब तुम्हारी पुस्तक का
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