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सुयोग्य पुत्र
वसिट्ठक ने बालक समझकर लापरवाही से कहापुत्र ! तुम्हारे दादा जी बहुत ही वृद्ध हो चुके हैं। बीमारी में बहुत कष्ट भोग रहे हैं, उन्हें इसमें गाड़ने के लिए ही गड्ढा खोद रहा हूँ। __बालक ने कहा-पिताजी ! यह तो बहुत ही बुरा कार्य है। दादा जी को जीते-जागते गाड़ देना बहुत बड़ा पाप है।
वसिठ्ठक की बुद्धि भ्रष्ट हो रही थी उसने बालक की बात पर ध्यान ही नहीं दिया। कुछ समय के बाद थककर वह विश्रान्ति के लिए एक ओर बैठ रहा। बालक उठा, उसने कुदाली ली और उस गड्ढे के पास ही दूसरा गड्ढा खोदने लगा।
वसिट्ठक-पुत्र ! क्या कर रहे हो ?
पुत्र-पिताजी जब आप भी वृद्ध होंगे तब आपको भी जमीन में गाढना पड़ेगा इसलिए अभी से गड्ढा खोदकर रखता हूँ, क्यों कि पिता का अनुसरण पुत्र को करना ही चाहिए। मैं कभी भी आपके द्वारा चलाई गई इस प्रथा को टूटने नही दूंगा।
वसिट्ठक ने बिगड़ कर कहा–नालायक कहीं का पुत्र होकर मेरा अहित करना चाहता है।
बालक-नहीं पिताजी ! मैं तो आपको महान् पाप से उबारना चाहता हूँ। आप स्वयं सोचिए। यह कैसा राक्षसी कृत्य है।
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