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अमिट रेखाए
दुःखित हृदय से सेठ ने पुत्र वधु को कहा—बेटी चलो मैं तुम्हें तुम्हारे पीहर पहुँचा दूं, कुछ दिन दूर रहोगी तो संभव है स्नेह का सागर उमड़ पड़े।
पुत्र वधु को लेकर सेठ चल दिये। उसी स्थान पर सेठ ने रात्रि विश्राम किया। पुत्र वधु जग रही थी, सेठ को भी अभी तक झपकी नहीं आई थी। पास के पेड़ पर बैठा हुआ कौआ बोला__ यदि समझ है तो सुनो, कौए के उद्गार ।
दो वृक्षों के बीच में, चरु गड़ें हैं चार ॥ पुत्र-वधु को पुरानी स्मृति ताजा हो गई। वह सारा दृश्य आंखों के सामने नाचने लगा, हो न हो उस रात्री को छिपकर वह दृश्य किसी ने देखा है अतः उसने उसी समय कहा
पति का रति न दोष है, है ऐसा ही भाग। जम्बुक ने तो यह किया, अब क्या बाको काग ॥
हे काग। शृगाल की बात को सुनकर तो चार रत्न लिये, उससे तो मेरे पति रुष्ट हो गये और मुझे छोड़ दी, यदि अब मैं सोना लूंगी न जाने क्या होगा, इसलिए मैं सोना लेना नहीं चाहती हूँ।
श्वसुर को लगा कि पुत्र वधु किसी से बात कर रही है, इस बात का क्या रहस्य है। उसने पुत्र-वधु से स्पष्टीकरण करने को कहा।
पुत्रवधु एक बार तो चौंक उठी, कि मैं तो सोच रही थी कि श्वसुर सो रहे हैं, पर ये तो जग रहे हैं। अब बात
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