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भक्त रैदास
भक्त रैदास का जीवन प्रामाणिक और पवित्र जीवन था। वे प्रतिपल-प्रतिक्षण भक्ति में ही लीन रहते थे। कर्तव्य को विस्मृत होकर भक्ति करना उन्हें पसन्द नहीं था। परिवार के भरण-पोषण के लिए वे जूते गांठते थे। दिन भर के कठोर श्रम के पश्चात् जो कुछ भी कमा पाते उससे उनकी गृहस्थी चलती। आय कम होने पर भी सन्तोष अधिक था। वे संग्रह को पाप मानते । जब भी उन्हें समय मिलता उसे वे सत्संगति और प्रभु-भक्ति में व्यतीत करते ।
एक बार गंगा के किनारे भारी मेला लगा था। हजारों व्यक्ति दूर-दूर से गंगा स्नान के लिए जा रहे थे। एक पण्डित भी उधर बढ़ रहा था। उसका अध्ययन कम था पर अहंकार बहुत ज्यादा था। उसके जूते फट गये थे। ज्यों ही वे रैदास के गांव में से गुजरे रैदास को जूते गांठते हुए देखकर अपने जूते भी ठीक करने को कहा। रैदास ने कहा-पण्डित प्रवर ! आप कुछ समय वृक्ष की शीतल
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