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अमिट रेखाएं
प्रतिभा ने मुस्कराते हुए कहा- तुम्हारी बात सत्य सिद्ध हो ! तुम कहोगे वैसा ही किया जायेगा । कुछ समय प्रतीभा की मीठी-मीठी बातों में उलझा कर उसने धीरे से पूछा- बताओ न ! तुमने राजा के मयूर को कैसे मारा |
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प्रतिभा ने कहा- वह प्रतिदिन मेरी दीवाल पर आता ही था। खाने के प्रलोभन से वह मेरे आंगन में उतरा और मैंने एक झटके में उसकी गर्दन तोड़ दी, और हृदय का माँस पकाकर खा गई । और पंख, पैर, हड्डी आदि भूमि में गाड़ दिये ।
राजा को लक्ष्य में रखकर नाईन ने कहा - दीवाल तुम भी सुन लो प्रतिभा क्या कहती है ।
प्रतिभा सकपका गई, वह समझ गई कि यह दीवाल के बहाने किसी को संकेत कर रही है, यह तो षडयंत्र है ।
उसने उसी क्षण कहा- मेरा सपना टूट गया और आँख खुल गई ।
आश्चर्य चकित हो नाईन ने पूछा- क्या तुम सपने की बात कर रही हो ।
प्रतिभा -- आप क्या समझी, क्या मैं कभी हत्या जैसा निकृष्ट कार्य कर सकती हूँ । तुम इतने दिनों से मेरे सम्पर्क में रही हो तथापि तुम मुझे नहीं पहचान सकी ।
नाईन के तो पैरों के नीचे की जमीन ही खिसकने लगी । उसका सिर चकराने लगा, पैर लडखडाने लगे ।
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