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महान्यज्ञ
१६ दिया है, वैसे ही मेरा हिस्सा भी खिला दीजिए। मेरी प्रार्थना को अमान्य न करें।
पत्नी के अत्यधिक आग्रह करने पर ब्राह्मण ने उसके हिस्से का भी आटा ब्राह्मण को खिला दिया, तो भी अतिथि की भूख नहीं मिटी । ब्राह्मण पहले से भी अधिक उदास हो गया। उसी समय ब्राह्मण-पुत्र ने कहा-मेरे हिस्से का यह आटा लीजिए और अतिथि को खिला दोजिए।
पिता ने कहा-वृद्ध की अपेक्षा युवक को अधिक भूख लगती है, अतः मैं तुम्हारा हिस्सा नहीं दे सकता।।
पुत्र-पिता के वृद्ध होने पर उसकी रक्षा का भार पुत्र पर होता है। पिता ही तो पुत्र बनता है अतः मेरा हिस्सा स्वीकार कर अध-भूखे अतिथि को संतुष्ट करें।
पुत्र की बात को सुनकर ब्राह्मण को प्रसन्नता हुई। उसने उसका हिस्सा भी अतिथि को खिला दिया। तथापि अतिथि का पेट न भरा । ब्राह्मण किंकर्तव्य विमूढ हो गया । अब इन्हें कैसे सन्तुष्ट करू ?
उसी समय पुत्र-वधु ने कहा-मैं अपना हिस्सा भी अतिथि देव को समर्पित करती हैं। यह उन्हें खिला दीजिए।
ब्राह्मण ने कहा-पुत्री ! तुम अभी लड़की हो, तुमने कितने कष्ट किये हैं, तुम्हारा शरीर भूख से बहुत ही कृश हो गया है । तुम्हें भूखी रखकर अतिथि को दान देना न्याय नहीं है।
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