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महायज्ञ
कुरुक्ष ेत्र का युद्ध समाप्त हो गया । युधिष्ठिर हस्तिनापुर की राजगद्दी पर आसीन हुए । अश्वमेध महायज्ञ का आयोजन किया गया । जिसमें भारत के बड़े-बड़े राजा एकत्रित हुए | यज्ञ का कार्य सानन्द सम्पन्न हुआ । सर्वत्र यह उद्घोषणा करवाई गई कि जिसे जो भी चाहिए उसे महाराजा युधिष्ठिर उदारता के साथ प्रदान करेंगे । हजारों व्यक्ति दान लेने के लिए उपस्थित हुए ।
यज्ञ का अन्तिम दिन था । एक विचित्र नेवला यज्ञशाला में आया । उसका आधा शरीर सुनहरा था और आधा साधारण नेवले का था, उसने वहां उपस्थित राजा, महाराजा, और विद्वान ब्राह्मणों को संबोधित कर मानव की भाषा में कहा
आप यह सोचकर मन में प्रसन्न हो रहें होंगे कि हमने महान् यज्ञ किया है, पर यह आपका भ्रम है । इससे भी पूर्व इस कुरुक्षेत्र में एक महान यज्ञ हो चुका है । एक गरीब ब्राह्मण ने एक सेर आटा अतिथि को दान में दिया
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