Book Title: Amit Rekhaye
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 22
________________ आचार्य स्थूलभद्र सातों बहनें भाई के पास पहुंची, वन्दना कर अपनी तथा अपने भाई श्रियक और अपनी दीक्षा की बात बताती हुई बड़ी बहिन साध्वी यक्षा ने कहा-आपके दीक्षा लेने के कुछ समय के पश्चात् हमारे मन में भी संसार से विरक्ति हुई । जब हम सातों बहनें दीक्षा के लिए तैयार हुई तो भाई श्रीयक ने भी कहा-मैं भी तुम्हारे साथ ही दीक्षा लूगा। उसने प्रधानमंत्री पद को छोड़कर दीक्षा की तैयारी की । हम आठों ने एक साथ दीक्षा ग्रहण की। भाई श्रीयक अत्यन्त सुकुमार था। नवकारसी करना भी उसके लिए बहुत ही कठिन था । पर्युषण का पुनीत पर्व आया। मेरी प्रबल प्रेरणा से उसने पौरसी का प्रत्याख्यान किया, पौरसी सानन्द सम्पन्न हुई । मैंने पर्व की महत्ता बताते हुए दो पौरसी का आग्रह किया और इतना समय तो धार्मिक आराधना करते बीत जायेगा, भाई भूख से आकुल-व्याकुल था तथापि उसने मेरी बात की अवहेलना नहीं की उसने मेरी बात सहर्ष स्वीकार कर ली । इस प्रकार संध्या का समय निकट आ गया। मैंने भाई से फिर कहा-अब तो रात्रि का समय ही अवशिष्ट है, वह तो आनन्द से सोते-सोते ही बीत जायगा। ___ अनुज मुनि सुकोमल तो थे ही, पर अन्तमुखी वृत्ति वाले थे। क्षधा-वेदना की परवाह किये बिना ही उन्होंने उपवास का प्रत्याख्यान कर लिया। रात्रि धीरे-धीरे व्यतीत हो रही थी और भूख भी अपना उग्र रूप धारण कर रही थी। एक ओर समता थी और दूसरी ओर क्षुधा थी। पर अनुज श्रीयक अध्यात्म-साधना में लीन हो गये। Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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