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नमो नमो निम्मलदसणस्स
५(१) भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति
अंगसूत्र-५/१-हिन्दी अनुवाद
(शतक-१)
उद्देशक-१ [१] अर्हन्तों को नमस्कार हो, सिद्धों को नमस्कार हो, आचार्यों को नमस्कार हो, उपाध्यायों को नमस्करा हो, लोक में सर्व साधुओं को नमस्कार हो ।
[२] ब्राह्मी लिपि को नमस्कार हो ।
[३] (प्रथम शतक के दस उद्देशकों की संग्रहणी गाथा इस प्रकार है-) "चलन" (के विषय में प्रश्न), दुःख, कांक्षा-प्रदोष, (कर्म) प्रकृति, पृथ्वियाँ, यावत्, नैरयिक, बाल, गुरुक और चलनादि ।
[४] श्रुत (द्वादशांगीरूप अर्हत्प्रवचन) को नमस्कार हो ।
[५] उस काल (अवसर्पिणी काल के) और उस समय (चौथे आरे-भगवान् महावीर के युग में) राजगृह नामक नगर था । (उसका वर्णन औपपातिक सूत्र में अंकित चम्पानगरी के वर्णन के समान समझ लेना चाहिए) उस राजगृह नगर के बाहर ईशानकोण में गुणशीलक नामक चैत्य था ! वहाँ श्रेणिक राजा था और चिल्लणादेवी रानी थी ।
[६] उस काल में, उस समय में (वहाँ) श्रमण भगवान् महावीर स्वामी विचरण कर रहे थे, जो आदि-कर, तीर्थंकर, स्वयं तत्त्व के ज्ञाता, पुरुषोत्तम, पुरुषों में सिंह की तरह पराक्रमी, पुरुषों में श्रेष्ठ पुण्डरीक-श्वेत-कमल रूप, पुरुषों में श्रेष्ठ गन्धहस्ती के समान, लोकोत्तम, लोकनाथ, लोकहितकर, लोक-प्रदीप, लोकप्रद्योतकर, अभयदाता, श्रुतधर्मरूपी नेत्रदाता, मोक्षमार्ग-प्रदर्शक, शरणदाता, बोधिदाता, धर्मदाता, धर्मोपदेशक, धर्मनायक, धर्मसारथि, धर्मवर-चातुरन्त-चक्रवर्ती, अप्रतिहत ज्ञान-दर्शनधर, छद्मरहित, जिन, ज्ञायक, बुद्ध, बोधक, बाह्य-आभ्यन्तर ग्रन्थि से रहित, दूसरों को कर्मबन्धनों से मुक्त कराने वाले, सर्वज्ञ सर्वदर्शी थे । तथा जो सर्व बाधाओं से रहित, अचल, रोगरहित, अनन्तज्ञानदर्शनादियुक्त, अक्षय, अव्याबाध, पुनरागमनरहित सिद्धिगति नामक स्थहन को सम्प्राप्त करने के इच्छुक थे ।
[७] (भगवान् महावीर का पदार्पण जानकर) परिषद् (राजगृह के राजादि लोग तथा अन्य नागरिकों का समूह भगवान् के दर्शन, वन्दन एवं धर्मोपदेश श्रवण के लिए) निकली । (भगवान् ने उस विशाल परिषद् को) धर्मोपदेश दिया । परिषद् वापस लौट गई ।
[८] उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर के पास उत्कुटुकासन से नीचे सिर झुकाए हुए, ध्यानरूपी कोठे में प्रविष्ट श्रमण भगवान् महावीर के ज्येष्ठ शिष्य इन्द्रभूति नामक अनगार संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरण करते थे । वह गौतम-गोत्रीय थे, सात हाथ ऊंचे, समचतुरस्त्र संस्थान एवं वज्रकृषभनाराच संहनन वाले