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संसार-चक्र भी समाप्त हो जाता है। इस बात को विभिन्न उदाहरणों मे इस शास्त्र में समझाया है। उत्तराध्ययन इसीलिये "गीता" है कि इसमें धर्म के मूल मन्त्र को प्रतिपादित किया है और उसे रोचक ढंग से प्रस्तुत कर आत्म-कन्यांण के मार्ग पर चलने के लिये प्रेरित किया है।
डॉ. कमलचन्द सोगांणी ने विभिन्न शास्त्रों और ग्रंथों की चयनिकाएं रचित की हैं। प्राचारांग की चयनिका सर्व प्रथम पढ़ी और बहुत ही प्रेरणादायक व उपयोगी लगी। इससे जैनागमों के प्रथम आगम आचारांग से परिचय हुआ। इसके बाद दशवकालिक, समणसुत्तं व गीता की चयनिका भी प्रकाशित हुई । अब उत्तराध्ययन की चयनिका प्रस्तुत की है। यह जन-साधारण के लिये बहुत ही हतकारी पुस्तक है। संक्षेप में पूरे शास्त्र का सार कुछ चुनी हुई गाथाओं से पहुंचाने का प्रयास है। इसके साथ प्राकृत के शब्दों का अर्थ और व्याकरणात्मक विश्लेषण भी प्राकृत से अनजान व्यक्तियों को प्राकृत भाषा से परिचय भी कराता है। यह डॉ. सोगाणी की प्रशंसनीय कृति है और सभी मुमुक्षु व्यक्ति इसका लाभ उठायेंगे यह पाशा की जा सकती है।
प्राकृत भारती ने कई दुर्लभ पुस्तकों का प्रकाशन किया है। साथ ही इस प्रकार की चयनिका व अन्य ग्रन्थों से जैन व प्राकृत के बारे में जन साधारण में प्रचार प्रसार करने का श्लाघनीय प्रयास किया है । इसके लिये इस संस्था के मूल प्रेरणा स्रोत श्री देवेन्द्रराज मेहता व मुख्य कार्यकर्ता व निदेशक महोपाध्याय श्री विनयसागरजी को साघुवाद है जिनके प्रयासों से यह साहित्य जन साधारण तक पहुंच रहा है।
इस चयनिका को पढ़कर मूल सूत्र उत्तराध्ययन सूत्र को संपूर्ण रूप से पढने की जिज्ञासा जागेगी ऐसी आशा करता हूँ।
रणजीतसिंह क मट
[उत्तराध्ययन
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