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115. जैसे (कोई व्यक्ति) अनाथ होता है और जैसे मेरे द्वारा उसका (अनाथ शब्द का अर्थ संस्थापित ( है ). ( वैसे) हे राजाधिराज ! मेरे द्वारा ( किए गए ) ( प्रतिपादन को ) एकाग्र चित्त से सुनो।
116. प्राचीन नगरों से अन्तर करनेवाली कौशाम्बी नामक ( मनोहारी) नगरी थी । वहाँ मेरे पिता रहते थे । (उनके). (पास) प्रचुर धन का संग्रह था ।
117. हे राजाधिराज ! ( एक बार ) प्रथम उम्र में अर्थात् तरुणावस्था में मेरी आँखों में असीम पीड़ा (हुई) (जो) प्राश्चर्यजनकरूप से (श्राँखों में) टिकी रहनेवाली (थी) | (और) हे नरेश ! शरीर के सभी अंगो में बहुत जलन (होती रही) ।
118. जैसे क्रोध-युक्त दुश्मन प्रत्यधिक तीखे शस्त्र को शरीर के छिद्रों के अन्दर घुसाता है ( और उससे जो पीड़ा होती है। उसी प्रकार मेरी आँखों में पीड़ा (बनी हुई थी ) ।
119. इन्द्र के वज्ञ ( शस्त्र) के द्वारा ( किए गए श्राघात से उत्पन्न पीड़ा के) समान मेरी कमर और (मेरे) हृदय तथा मस्तिष्क में अत्यन्त तीव्र (और) भयंकर पीड़ा (थो) । ने मुझे ) (प्रत्यधिक) परेशान किया ।
( उस पीडा
120. अलौकिक विद्याओं और मंत्रों के द्वारा इलाज करनेवाले, (चिकित्सा) - शास्त्र में योग्य, मंत्रों के आधार में प्रवीर, अद्वितीय (चिकित्सा) - आचार्य मेरा ( इलाज करने के लिए) पहुँचे ।
चयनिका
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